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132 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन वीतिभय के राजा उद्रायण, पाटिलपुत्र के सम्राट चन्द्रगुप्त व उज्जयिनी के सम्राट संप्रति आदि का उल्लेख आता है, जो निर्ग्रन्थ श्रमणों के परम उपासक माने जाते हैं। इनमें उद्राय आदि राजाओं को महावीर ने श्रमणधर्म में दीक्षित किया था। महावीर के नाना चेटक की सात कन्याओं में से प्रभावती का विवाह राजा उद्रायण के साथ, पद्मावती का शतानीक के साथ, शिवा का प्रद्योत के साथ, ज्येष्ठा का महावीर के भ्राता नन्दिवर्धन के साथ
और चेतना का श्रेणिक बिम्बसार के साथ हुआ था। वैभव-विलास से पूर्ण इन राजघरानों का भगवान् महावीर ने श्रमणधर्म में दीक्षित किया था।
स्त्रियों में राजा दधिवाहन की पुत्री- चंदनबाला भगवान महावीर की प्रथम शिष्या और भिक्षुणी-संघ की गणिनी बनी थीं। महारानियों में जयन्ती, मृगावती, अंगारवती और काली तथा राजकुमारों में मेघकुमार, नंदिषेण, अभयकुमार आदि मुख्य हैं। श्रावक-श्राविकाओं में शंख, शतक, सुलसा और रेवती आदि उल्लेखनीय हैं।
केवलचर्या के प्रथम वर्ष में जब महावीर विहार कर राजगृही पधारे तो वहाँ राजा श्रेणिक ने सपरिवार राजसी ठाठ के साथ उनकी आगवानी की थी तथा उनके ज्ञानोपदेश को सुनकर सम्यक्त्व प्राप्त किया था। अभयकुमार आदि ने श्रावकधर्म स्वीकारा था। नेमीचन्द्रकृत महावीरचरित, पर्व 73-2 में लिखा है
एसाई धम्मकहं सोउ सेणिय निवोइया भव्वा। संमत्तं पडिवन्ना केई पुण देश विरयाई।। 294 ।।
त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचरित्र पर्व 10, सर्ग 6 में इस प्रकार वर्णन मिलता है -
श्रुत्वा तां देशनां भर्तुः सम्यक्त्वं श्रेणिकोऽश्रयत् । श्रावक-धर्मत्वमभय – कुमाराद्याः प्रपेदिरे ।। 376 ||
महावीर ने क्षत्रिय कुण्ड-ग्रामों में भी अपने वचनामृत से सबको वशीभूत कर लिया था। ऋषभदत्त व देवानन्दा भी महावीर के वात्सल्य से अभिभूत व दीक्षित होकर तपःसाधना करते हुए मोक्ष को प्राप्त हुए । क्षत्रिय