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________________ वीरोदय का स्वरूप 131 परिच्छेद - 2 भगवान महावीर के उपदेशों का तात्कालिक राजाओं पर प्रभाव तीर्थंकर महावीर ने धर्मामृत की वर्षा केवल राजगृह के आस-पास ही नहीं की, अपितु उनके समवशरण का विहार भारत के सुदूरवर्ती प्रदेशों में भी हुआ । हरिवंशपुराण में लिखा है कि जिस प्रकार भक्तवत्सल तीर्थकर ऋषभदेव ने अनेक देशों में बिहार कर उन्हें धर्म से युक्त किया था, उसी प्रकार अन्तिम तीर्थंकर महावीर ने भी वैभव के साथ विहार कर मध्य के काशी, कौशल, कौशल्य, पांचाल, मत्स्य, शूरसेन आदि देशों में लोगों को धर्म की ओर उन्मुख किया। उन्होंने वैशाली, वणिज ग्राम, राजगृह, नालन्दा, मिथिला, भद्रिका, अलामिका, श्रावस्ती और पावा में विशेष रूप से धर्मामृत की वर्षा की थी । विपुलाचल और वैभारगिरि पर भी उनकी दिव्य ध्वनि कई बार हुई थी। अनेक राजा - राजकुमार और राजकुमारियों ने आत्म-कल्याण का मार्ग ग्रहण किया । 1 भगवतीसूत्र में तीर्थंकर महावीर के नालन्दा, राजगृह, पणियभूमि, सिद्धार्थग्राम, कूर्यग्राम आदि में पधारने का उल्लेख है । उवासगदसासूत्र में वणिजग्राम की धर्मसभा में आनन्द और उसकी भार्या शिवानन्दा इनके उपासक बने थे | चम्पा में श्रावक कामदेव और श्राविका भद्रा, वाराणसी में श्रावक चूलनिप्रिय एवं सूरदेव तथा श्राविका श्यामा और धन्या, राजगृह में श्रावक महाशतक और विजय श्रावस्ती में नन्दिनीप्रिय और शलतिप्रिय उपासक बने थे । जैन-ग्रन्थों में 18 गणराज्यों में प्रमुख वैशाली के राजा चेटक, राजगृह के राजसिंह श्रेणिक (बिम्बसार ) कूणिक (अजातशत्रु), कौशम्बी के राजा उदयन, चंपा के राजा दधिवाहन, उज्जयिनी के राजा प्रद्योत,
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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