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74 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन साथ विवाह करने का निवेदन किया। ऐरावण ने स्वीकृति देकर प्रियंगश्री को स्तवकगुच्छ में लाने के लिये कहा। अलकापुरी से स्तवकगुच्छ लाते समय मार्ग में प्रियङगुश्री से विवाह करने के इच्छुक वज्रसेन नाम के एक अन्य पुरूष से महाकच्छ की मुठभेड़ हो गई। यह बात ऐरावण ने सुनी। उसने शीघ्रता से आकर वज्रसेन को पराजित कर प्रियङगुश्री के साथ विवाह कर लिया। वजसेन ने निराश होकर जिनदीक्षा ले ली और ऊपरी मन से तपस्या करने लगा। (द्वितीय सर्ग) .
मित्र की बातों से भद्रमित्र बहुत प्रभावित हुआ और घर आकर देशान्तर जाने के लिये पिता से आज्ञा मांगी। पिता ने कहा "मेरी तो स्वयं की इतनी अधिक आय है कि तुन्हें धनार्जन करने की कोई आवश्यकता नहीं है फिर तुम मेरे एकमात्र पुत्र हो, इसलिये तुम्हारा जाना मेरे लिये कष्टप्रद होगा"। अन्ततोगत्वा माता-पिता से अनुमति पाकर भद्रमित्र साथियों सहित रत्नद्वीप पहुँचा। वहाँ उसने सात रत्न प्राप्त किये। इसके पश्चात् वह सिंहपुर गया। उस समय सिंहपुर में राजा सिंहसेन राज्य करता था। उसकी पत्नी रामदत्ता और मंत्री श्रीभूति था। उसने अपने को सत्यवादी प्रचारित कर रखा था। उसने गले में छुरी बाँध रखी थी कि यदि कभी उसके मुँह से असत्य बात निकली तो वह उसी से अपनी जीभ काट लेगा। इस झूठे गुण के कारण ही राजा से उसने ‘सत्यघोष' नाम भी पा लिया था।
सिंहपुर में भद्रमित्र का परिचय इसी सत्यघोष मंत्री से हुआ। उसने सत्यघोष को बहुत-सा पुरस्कार देकर उससे अपने माता-पिता को सिंहपुर में ही बसाने की आज्ञा ले ली। वह अपने सातों रत्न सत्यघोष को सौंपकर माता-पिता को लेने चला गया। अपने घर से लौटकर भद्रमित्र ने सत्यघोष से अपने रत्न मॉगे तो उसने स्वीकार ही नहीं किया कि भद्रमित्र उसे अपने रत्न सौंप गया था। जब भद्रमित्र ने अनेक प्रकार से अपनी बात को प्रमाणित करने की चेष्टा की तो पहरेदारों ने पागल कहकर उसे बाहर निकाल दिया। निराश होकर भद्रमित्र एक निश्चित समय पर वृक्ष पर चढ़कर सत्यघोष की झूठी कीर्ति की निन्दा करते हुए उसकी प्रतिष्ठा नष्ट