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________________ आचार्य भावसेन कृत वेद प्रामाण्यवाद की समीक्षा ६५ 'सभी शब्द नित्य है, क्योंकि उनका उच्चारण इसलिए किया जाता हैं कि श्रोता के कान तक पहुँच कर वक्ता का तात्पर्य बतला सके। यदि शब्द अस्थिर होंगे तो मध्य में ही नष्ट हो जाएंगे, संसार का व्यवहार ही लुप्त हो जाएगा। अत: मानना होगा कि शब्दत्व नित्य है। पुरुष की उत्पत्ति से पूर्व ही वर्तमान था। __ जैनाचार्य का मत है कि शब्दों के अर्थ-घट, पट आदि भी नित्य नहीं हो सकते। वे तो निसंदेह पुरुष द्वारा रचे गये हैं। अत: अर्थ पौरुषेय है। मीमांसकों का मत है कि शब्द का अर्थ विशेष वस्तु नहीं अपितु सामान्य जाति होने के कारण नित्य है। सास्नादिविशिष्टाद्भतिरिति ब्रूम:२२ मीमांसकों के अनुसार शब्द का अर्थ है जाति। जैसे गौ शब्द का गौत्व। शब्द का वाच्य अनित्य तथा परिणामी व्यक्ति-पदार्थ नहीं होता, अपितु नित्य सामान्य होता है। जो व्यक्तियों में अनुगत रहता है। मीमांसकों के अनुसार शब्द और अर्थ का संबंध भी नित्य है। आलोचकों का मत है कि शब्द और अर्थ का संबंध स्थापित करना पुरुष का काम है। बिना संबंध स्थापित किए कोई भी शब्द किसी अर्थ को नहीं कह सकता। संबंध 'पौरुषेय है। महर्षि जैमिनि के अनुसार शब्द और अर्थ का संबध नित्य है उसे अनित्यपौरुषेय कहना मूर्खता होगा। औत्सर्गिकस्तु शब्दस्यार्थेन संबंध ___ यह शब्दार्थ संबंध न ईश्वर-संकेत से आता है और न रूढिगत वृद्ध-व्यवहार से। अत: यह नित्य है। जैमिनि के अनुसार वैदिक वाक्यों की रचना भी पौरुषेय नहीं है तदभूतानां क्रियार्थेन समाम्नायोऽर्थस्य तन्निमित्तवात्" __मीमांसा के अनुसार जब सभी शब्द, अर्थ, शब्दार्थ संबंध नित्य है, तो फिर सभी साहित्यिक या सार्थक ग्रंथ नित्य हो जाएंगे। तब मात्र वेद को ही नित्य मानने का क्या कारण है? मीमांसकों के अनुसार अन्य ग्रंथों या प्रबंधों में या भाषणों में शब्दों के प्रयोग का क्रम या आनुपूर्वी रचियता या वक्ता के ऊपर निर्भर रहती है, अत: ग्रंथों आदि का भेद प्रसिद्ध है। इसलिए ये ग्रंथादि पौरुषेय होते हैं। और इनमें संशय विपर्यय आदि दोषों की संभावना रहती है। किंतु वेद अपौरुषेय हैं, और उनमें शब्दों का क्रम या आनुपूर्वी भी नित्य तथा स्वतः निर्धारित है। अत: वेद की नित्यता, अपौरुषेयता और स्वतः प्रामाण्य स्वत: सिद्ध है।
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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