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रञ्जन कुमार
ज्ञानकर्म समुच्चय से नहीं हो सकती, क्योंकि कर्म से निष्पन्न होने वाला कोई पदार्थ नित्य नहीं होता जबकि मोक्षावस्था नित्य है।' मोक्ष ज्ञान का उत्पाद्य नहीं है क्योंकि ज्ञान का उत्पाद्य होने पर वह अनित्य हो जाएगा, अतः ज्ञान और मोक्ष एक ही है।१० __ जैन दार्शनिक मोक्ष को आत्मा की वह विशुद्धावस्था मानते हैं जिसमें किसी भी विजातीय तत्त्व के साथ संयोग नहीं रहता और सम्पूर्ण विकारों का अभाव होकर आत्मा स्व-स्वरूप में स्थिर हो जाती है। इसमें जीवन का विसर्जन न होकर मानवबुद्धि में उत्पन्न मिथ्यात्व का नाश होता है। इस मिथ्यात्व के स्थान पर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग्चारित्र का विकास होता है। मोक्ष वस्तुतः कोई ऐसी दुर्लभ वस्तु नहीं है जिसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। वास्तव में कर्मबंधन के मूल कारणों पर विजय प्राप्त कर लेने पर यह स्वतः प्राप्त हो जाता है। दशवैकालिक में कहा गया है,
आरक्षित आत्मा आवेगों में फँसकर कर्मों का बंध करती है और सुरक्षित आत्मा विकारजन्य या कर्मजन्य समस्त बंधनों को तोडकर मुक्त हो जाती है। ___ वस्तुतः जैन एवं अद्वैतवादी दोनों इस बात पर सहमत हैं कि मोक्ष या मुक्ति जीवन का अभिन्न अंग है। बंधन एवं मोक्ष जीवन के दो पक्ष हैं जहाँ अन्यान्य कारणवश जीव/आत्मा अपनी प्रकृतावस्था को विस्मृत कर बैठती है वही मोक्षावस्था में वह समस्त विकारों का दमन कर एक शुद्ध विशुद्ध एवं शाश्वत स्थिति प्राप्त करती है। कर्म, बंधन और मोक्ष
बंधन और मोक्ष कर्म के अभाव में निष्प्रयोज्य हैं। क्योंकि कर्म ही जगत वैचित्र्य एवं दार्शनिक ऊहापोह का केंद्रीय तत्त्व है। यह कर्म ही है जो जीव को बंधनमुक्त करता है और बंधनमुक्त जीव इसी कर्मबंधन से मुक्त होकर मोक्षावस्था की कामना करते हैं। वस्तुतः कर्म क्या है और यह किस प्रकार बंधन एवं मोक्ष से संबद्ध है आदि कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनपर दार्शनिकों ने पर्याप्त चिन्तन किया है, जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
कर्म का साधारण अर्थ 'क्रिया' होता है। वेदों से लेकर ब्राह्मण काल तक वैदिक परम्परा में कर्म का क्रियापरक अर्थ ही दृष्टिगत है, परंतु जैन दर्शन में कर्म शब्द विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वैसे जैन दर्शन में क्रिया को ही कर्म कहा गया है और क्रिया में जीव की शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक तीनों ही प्रकार की क्रियाओं को समाविष्ट किया गया है। वस्तुतः शरीर, मन एवं वाणी के निमित्त से जो कुछ भी किया जाता है उसे कर्म कहा गया है। शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक व्यापार को