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________________ अनेकान्तवाद : सर्वसमावेशी सांस्कृतिक सहभाव का दर्शन ११९ धार्मिक उन्माद ही सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे ही विश्व के अन्य देशों में भी उनकी परिस्थितियों के सापेक्ष समस्याएँ, बाह्य एवं आन्तरिक असुरक्षा व्याप्त हो चुकी हैं। कहने का तात्पर्य है कि सम्पूर्ण सामाजिक संतुलन के तार अस्त-व्यस्त हो गये हैं। इन सबका मूल कारण वैचारिक धरातल पर है। हम सबको साथ लेकर चलने में विश्वास नहीं कर रहें। यहाँ तक कि संयुक्त परिवार खण्डित हो रहे हैं। कोई भी अपने ही परिवारीजनों के साथ एक छत के नीचे नहीं रहना चाहता। ऐसी परिस्थिति के आ जाने पर जब व्यक्तियों में सहभावन की सम्भावना न दिखती हो, तब अनेकान्तवाद का दर्शन लोगों में एक नये भविष्य की आशा के साथ सह-अस्तित्व के बीज का पुनर्वपन कर सकता है। यह तत्त्वमीमांसा का सिद्धान्त व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं सम्पूर्ण विश्व में सहजीवन एवं शक्ति का संचार कर सकता है। ५. उपसंहार जैन दर्शन भारतीय संस्कृति के श्रमण चिन्तनधारा का एक दार्शनिक सम्प्रदाय है। इस दर्शन की अनूठी तत्त्वमीमांसा का तार्किक सिद्धान्त जो 'अनेकान्तवाद' के रूप में प्रख्यात है, इस दर्शन का प्राणतत्त्व है। यह सिद्धान्त न केवल अपनी वैचारिकी के कारण प्रसिद्ध है, प्रत्युत् इसका प्रयोग ज्ञानमीमांसा, नीति एवं समाज दर्शन के क्षेत्र में भी सफल एवं व्यवहार्य है । अनेकान्तवाद का दार्शनिक आधार यही है कि यह वाद अन्य वादों को भी सम्यक् अवकाश प्रदान करता है। इसके अनुसार जैन दर्शन का कहना है कि वस्तु में अनेक गुण है, और हम अपनी सीमित ज्ञान-शक्ति के द्वारा कुछ को ही जान सकते हैं, सबको नहीं। ऐसे में अन्यों के कथनों को नकारने का हमें तार्किक आधार प्राप्त नहीं है। अतः हमें उसे भी आंशिक सत्य के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए । यही विचार जैन दर्शन को उच्च नैतिक मानदण्ड स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है जिससे सर्वसमावेशी सह-अस्तित्व की भावना का नैतिक दर्शन विकसित होता है। अर्थात् जैन दर्शन की तत्त्वमीमांसा का 'अनेकान्तवाद' उसकी ज्ञानमीमांसा के 'स्यादवाद' एवं नीतिमीमांसा के सर्वसमावेशितावाद के रूपों में तर्कतः प्रकट होता है। १. संदर्भ एवं टिप्पणियाँ 66 यादव, बालेश्वर प्रसाद, 'श्रमण-ब्राह्मण चिन्तनधारा के प्रभेदक तत्त्वमीमांसीय परिप्रेक्ष्य”, संस्कृति संधान, जिल्द - XXV, नं. २, २०१२, पृ. १०९-१२२
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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