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________________ जैन परंपरा में पर्यावरण उपभोक्ता, एक श्रमिक, एक नागरिक, एक अधिकारी, एक पर्यटक, एक निवेशक, एक उद्योगपति के रूप में किस तरह की मानसिकता रखते हैं। लाभ और लोभ की मानसिकता से अन्ततः हानि ही होती है। इसलिए व्यक्ति को कोई भी भूमिका निभाते समय मानवीय भावना रखनी अत्यन्त आवश्यक है। क्षुद्र स्वार्थ एवं उपभोगवादिता की अन्धी दौड़ में लगे रहने का परिणाम वही हो सकता है जो आज हम भोग रहे हैं। समस्त प्राणी सुखमय रहें तथा पर्यावरण अक्षत रहे इसके लिए संपोष्य विकास के सिद्धान्त को अपनाना आवश्यक है। इसके लिए स्वार्थवादिता और उपभोगतावादी संस्कृति त्यागकर अपनी आवश्यकता को सीमित करना होगा। महात्मा गांधी का मानना है कि संसार हमारी आवश्यकता तो पूरी कर सकता है लेकिन लोभ नहीं शान्त कर सकता। इसलिए जैन परम्परा द्वारा प्रस्तावित अहिंसा और अपरिग्रह के मार्ग पर चलकर ही हम प्राणिमात्र के भविष्य को सुरक्षित रख सकते हैं। महावीर स्वामी के अनुसार महत्त्व इस बात का है कि हम किस दिशा की ओर बढ रहे हैं। न कि इसका कि आज हम कहाँ खडे हैं। हम जहाँ खडे है वह हमारे पहले के किये कार्यों का परिणाम है, जिसमें हम कोई परिवर्तन नहीं कर सकते हमें इन्हें भोगना ही पडेगा । महत्त्वपूर्ण यह है कि आज हम जिस पर्यावरण संकट से जूझ रहे हैं उससे निपटने के लिए हम कितनी सजगता और ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं। डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ की रिपोर्ट में पांच मुख्य सुझाव दिये गये हैं जो पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता के लिए आवश्यक हैं : अ) जनसंख्या नियंत्रण करना एवं परिवार छोटा रखने को प्रोत्साहन देना, ब) उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का त्याग एवं जीवन में गुणात्मक सुधार करना, स) उत्पादन में प्राकृतिक संसाधनों का सीमित प्रयोग करना, द) भूमि का उचित प्रबन्धन करना तथा य) मृदा मत्यस्य एवं वन का विशेष संरक्षण करना। यदि हम विचारपूर्वक देखें तो इन सुझावों का आधार जैन परम्परा की अहिंसा और अपरिग्रह की भावना के निकट है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि पर्यावरण संकट का वैश्विक स्तर पर कोई भी समाधान अहिंसा और अपरिग्रह की भावना के अनुरूप ही हो सकता है। यदि हम इस भावना के अनुसार आचरण करने में सफल रहे तो मनुष्य और प्रकृति के बीच वास्तव में वह सम्बन्ध स्थापित हो जायेगा जो कि एक भ्रमर और पुष्प के बीच होता है। ९५
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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