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4 :: मूकमाटी-मीमांसा
और / इन चालाक, चालकों की संख्या अनगिन है ।" (पृ. १५२)
इसी में चार अक्षरों की कविता में कहते हैं :
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'मैं दो- गला'/... मैं द्विभाषी हूँ / भीतर से कुछ बोलता हूँ बाहर से कुछ और / पय में विष घोलता हूँ ।" (पृ. १७५)
और वे सावधान करते हैं कि अरे बन्धु सोचकर तो देख :
"भोग पड़े हैं यहीं / भोगी चला गया,/ योग पड़े हैं यहीं / योगी चला गया कौन किस के लिए / धन जीवन के लिए / या जीवन धन के लिए ? मूल्य किसका / तन का या वेतन का, / जड़ का या चेतन का ?" (पृ. १८० )
कवि त्रिकालदर्शी होता है और उसकी वाणी समय की परतों को भेदकर गूँजती है। ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान् बुद्ध ने कहा था : " नहि बैरेन बैराणि सम्मन्तीध कदाचन । अबैरेन च सम्बन्ती एसधम्मो सनन्तनो ।” आज आचार्यश्री के मुख से मूकमाटी उसी भाव का साक्षात्कार करते हुए कहती है कि बैर, बदले का भाव पर का घात करे या न करे, आत्मा का घात अवश्य करता है ।
" बदले का भाव वह दल-दल है / कि जिसमें / बड़े-बड़े बैल ही क्या बल-शाली गज-दल तक/ बुरी तरह फँस जाते हैं/और/गल- कपोल तक पूरी तरह धँस जाते हैं ।/ बदले का भाव वह अनल है
जो / जलाता है तन को भी, चेतन को भी / भव भव तक !" (पृ. ९७-९८)
अज्ञजन सत्य तत्त्व की परख - पहचान किए बिना मन्त्र या शास्त्र को ही अच्छा-बुरा कहने लगते हैं। कवि उन्हें सम्बोधित करते हैं जो उसका अच्छा-बुरा अर्थ या उपभोग करता है
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"मन्त्र न ही अच्छा होता है / ना ही बुरा
अच्छा, बुरा तो/ अपना मन होता है ।" (पृ. १०८ )
'मूकमाटी' सम्बोधन है माँ धरती का । अपनी सन्तानों से कहती है माँ :
" सुत को प्रसूत कर / विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने मात्र से / माँ का सतीत्व वह विश्रुत - सार्थक नहीं होता / प्रत्युत / सुत - सन्तान की सुषुप्त शक्ति को सचेत और / शत-प्रतिशत सशक्त - / साकार करना होता है, सत् - संस्कारों से । सन्तों से ही श्रुति सुनी है / सन्तान की अवनति में / निग्रह का हाथ उठता है माँ का और/ सन्तान की उन्नति में / अनुग्रह का माथ उठता है माँ का ।" (पृ. १४८ )
जयशंकर प्रसाद की अमरकृति 'कामायनी' में महाप्रलय के जलप्लावन के उपरान्त मनु और श्रद्धा के कालजयी संवाद को मानों प्रतिध्वनित-सा करते हुए मूकमाटी की यह अनुगूँज कर्णकुहरों से हृदय सरोवर में प्रवेश कर उसे आलोड़ित-बिलोड़ित, मथित, विक्षुब्ध-सा करती प्रतीत होती है । पुरुष जाति को मद, अहंकार और गर्व की प्रगाढ़ मोह-निद्रा से झकझोर कर उठाती, सम्बोधित करती है मूकमाटी कि मेरे पुरुष बन्धु, मीत, तनिक होश में आ और सुन !