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lxxii :: मूकमाटी-मीमांसा
कृति के पृ. ३४९ से पृ. ३५२ तक के अंश पठनीय हैं । एक अंश देखें:
"जल के अभाव में लाघव/गर्जन-गौरव-शून्य । वर्षा के बाद मौन/कान्तिहीन-बादलों की भाँति
छोटा-सा उदासीन मुख ले/घर की ओर जा रहा सेठ।” (पृ. ३४९) प्रसंगों की उद्भावना शक्ति काफी उर्वर है, यह कहना अनावश्यक है।
चौथा सन्दर्भ संवादों से भरी 'विचार प्रवण भाषा' का है । यह सही है कि सैद्धान्तिक मान्यताएँ संवादों से भरी पड़ी हैं। उनकी योजना ही इसीलिए है तथापि वे पारिभाषिक शब्दावली से इतनी बोझिल नहीं हैं कि एक सामान्य प्रबुद्ध सहृदयक पाठक की पकड़ से बाहर रह जायँ । संकल्पानुसार जहाँ-तहाँ अपने प्रस्थान के विचार-गर्भ पारिभाषिक पद
और वाक्य तक यहाँ-वहाँ आ गए हैं, जिन्हें काव्यशास्त्री 'अप्रतीतत्व' दोष से ग्रस्त मानते हैं। एक बात है कि रचयिता स्वयं जानता है कि वह जिनको केन्द्र में रखकर व्युत्पत्ति का आधान करने के निमित्त लिख रहा है वे सामान्य पाठक भी हो सकते हैं। अत: जब वह ऐसी कोई बात रखता है तब एक बार कह लेने के बाद भी शब्दान्तर से उसे और स्पष्ट करता चलता है । यह सही है कि काव्य शास्त्र नहीं है, पर काव्य विचारशून्य होता है, ऐसा भी नहीं है। विचारों की रेशमी डोर जितनी मजबूत होगी, भाव के पैग उतने ही लम्बे जा सकते हैं। एक उदाहरण लें :
"इस पर अतिथि सोचता है कि/उपदेश के योग्य यह न ही स्थान है, न समय/तथापि/भीतरी करुणा उमड़ पड़ी सीप से मोती की भाँति/पात्र के मुख से कुछ शब्द निकलते हैं : 'बाहर यह/जो कुछ भी दिख रहा है/सो मैं नहीं हूँ
और वह/मेरा भी नहीं है'...।" (पृ.३४४-३४५) यह एक दार्शनिक वक्तव्य है, सो सुबोध भी है और दुर्बोध भी । मतलब यह कि विचारगर्भ स्थलों की भाषा शास्त्र की दुर्बोध और व्याख्यागम्य भाषा नहीं है । भाषा जब अनुभूति से फूटती है और अनुवाद की नहीं होती, तब सुबोध होती है।
भाषा का पाँचवाँ सन्दर्भ घटनाओं के धारावाहिक वर्णनात्मक प्रसंगों का है। चौथे खण्ड का उत्तरार्ध इसकी प्रयोगस्थली है । यद्यपि विचार-गर्भ संवादों की योजना से शून्य वह भी नहीं है । ये वर्णन इतिवृत्तात्मक पद्धति पर अभिधा की भाषा में हैं पर काव्यात्मक बनाने का प्रयास वहाँ भी रहता है, देखें :
"उद्दण्डता दूर करने हेतु/दण्ड-संहिता होती है/माना,
दण्डों में अन्तिम दण्ड/प्राणदण्ड होता है।” (पृ. ४३०-४३१) ऐसी आनुप्रासिक योजना पाठक को खींचती है। घटना वर्णन की भाषा का प्रसंग है, अत: एक उदाहरण :
"तत्काल विदित हुआ विषधरों को/विप्लव का मूल कारण । परिवार निर्दोष पाया गया/जो/इष्ट के स्मरण में लगा हुआ है,
गजदल सरोष पाया गया/जो/शिष्ट के रक्षण में लगा हुआ है।" (पृ. ४३०) अन्त्यानुप्रास युक्त अभिधामयी सपाट भाषा है । अलंकार प्रयोग, ध्वनि और वक्रता-गर्भ भाषा के तमाम उदाहरण रखे जा सकते हैं, पर भूमिका की एक लक्ष्मण रेखा है, उसके बाहर भी नहीं जाना है। साथ ही सम्पादित संकलन में इस विषय पर विस्तृत निबन्ध मिलेगे । अत: लेखनी विरत हो रही है।