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________________ अतः मूकमाटी-मीमांसा :: 501 "गुणी रहा जो वही नियम से विविध गुणों का निलय रहा, विलय गुणों का होना ही बस, हुआ गुणी का विलय रहा । अत: 'मोक्ष' गुण गुणी विलय ही अन्य मतों का अभिमत है; रागादिक की किन्तु हानि ही मोक्ष रहा यह 'जिनमत' है" ॥ २६५ ॥ रयणमंजूषा (४ अप्रैल, १९८१) आचार्य समन्तभद्र प्रणीत संस्कृत में निबद्ध रत्नकरण्डक श्रावकाचार' की यह भाषान्तरित पद्यबद्ध कृति है। यह एक ऐसी मंजूषा है जिसमें श्रावकवर्ग के लिए उपदेश के रत्न भरे हुए हैं । जो इन्हें अपने जीवन में उतारता है, वह जीवन को चरितार्थ कर लेता है। कहा गया है : "मिथ्यादर्शन आदिक से जो निज को रीता कर पाया, दोषरहित विद्या दर्शन व्रत रलकरण्डक कर पाया। धर्म अर्थ की काम मोक्ष की सिद्धि उसी का वरण करे; तीन लोक में पति-इच्छा से स्वयं उसी में रमण करे" ॥१४९ ॥ आप्तमीमांसा (१६ सितम्बर, १९८३) आचार्य समन्तभद्र स्वामी द्वारा संस्कृत भाषाबद्ध 'आप्तमीमांसा' (देवागमस्तोत्रम्) का आचार्यश्री द्वारा पद्यबद्ध यह भाषान्तरण है । इसमें आप्तजन कहते हैं : “विधेय है प्रतिषेध्य वस्तु का अविरोधी सुन आर्य महा, कारण, है वह इष्ट कार्य का अंग रहा अनिवार्य रहा। आपस में आदेयपना औ हेयपना का पूरक है; स्याद्वादवश यही रहा सब वादों का उन्मूलक है" ॥११३ ॥ एकान्त नहीं, अनेकान्त दृष्टि ही संगत है। इष्टोपदेश (१९७१ एवं २० दिसम्बर, १९९०) आचार्य पूज्यपाद कृत संस्कृत भाषाबद्ध 'इष्टोपदेश' का आचार्यश्री द्वारा इसका भाषान्तरण ('वसन्ततिलका' एवं 'ज्ञानोदय' छन्द में पृथक्-पृथक् पद्यबद्ध) दो बार किया गया है। इनमें मोहग्रस्त जीव की दुर्दशा और तपोरत की स्वस्थता का तरह-तरह से वर्णन मिलता है । एक पद देखें : "ना जानना परिषहादिक को विरागी, होता न आसव जिसे वह मोक्षमार्गी । अध्यात्म योगबल से फलत: उसी की; होती सही ! नियम से नित निर्जरा हो" ॥२४॥
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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