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खण्ड चार का शीर्षक है- 'अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख ।' यह महाकाव्य का अन्तिम खण्ड है। निम्नलिखित सूक्तियाँ - शोभनोक्तियाँ इसमें मिलती हैं :
“अपनी कसौटी पर अपने को कसना / बहुत सरल है ।" (पृ. २७६)
" अपनी आँखों की लाली / अपने को नहीं दिखती है ।" (पृ. २७६)
"शिष्टों पर अनुग्रह करना / सहज प्राप्त शक्ति का सदुपयोग करना है, धर्म है।" (पृ. २७६-२७७)
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मूकमाटी-मीमांसा :: 461
कार्य करना पड़ता है।” (पृ. २२५ )
“जब हवा काम नहीं करती / तब दवा काम करती है,
और/ जब दवा काम नहीं करती/ तब दुआ काम करती है।” (पृ. २४१ )
" ध्यान की बात करना / और / ध्यान से बात करना इन दोनों में बहुत अन्तर है ।" (पृ. २८६ )
“ध्यान के केन्द्र खोलने - मात्र से / ध्यान में केन्द्रित होना सम्भव नहीं ।" (पृ. २४६)
" ग्राहक की दृष्टि में / वस्तु का मूल्य वस्तु की उपयोगिता है ।” (पृ. ३०४ )
" दाँत मिले तो चने नहीं, / चने मिले तो दाँत नहीं,
और दोनों मिले तो / पचाने को आँत नहीं ।" (पृ. ३१८)
“समर्पण के बाद समर्पित की / बड़ी-बड़ी परीक्षायें होती हैं ।" (पृ. ४८२ ) “समग्र संसार ही/दु:ख से भरपूर है,
यहाँ सुख है, पर वैषयिक / और वह भी क्षणिक !" (पृ. ४८५ )
" ऊपर से नीचे देखने से / चक्कर आता है / और
नीचे से ऊपर का अनुमान / लगभग गलत निकलता है।” (पृ. ४८७-४८८)
आलोच्य महाकाव्य 'मूकमाटी' की सूक्तियों में व्यावहारिकता तथा अनुभववाणी है । नवीन परिकल्पनाओं से, समुचित अलंकार प्रयोग से भावाभिव्यक्ति में प्रौढ़ता आई है। सूक्तियों, शोभनोक्तियों के अतिरिक्त शब्द व्युत्पत्ति, शब्द विपर्यय, बीजाक्षर के चमत्कार, अंकों का चमत्कार, आयुर्वेद का प्रयोग, मन्त्र विद्या आदि आधुनिक जीवन में विज्ञान से उद्भूत अवधारणाओं को प्रस्तुत करने के कारण यह महाकाव्य मौलिक बन गया है।
पृ. ३३१
लो, अतिथिकी अंजुलि खुल पड़ती है....
..... रसदार या सूखा-सूखा सब समान!