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मूकमाटी-मीमांसा :: 459
हाथ का प्रयोग तब/कार्य करता है।" (पृ. ६०) "हाथ का प्रयोग जब/बल-हीन होता है
हथियार का प्रयोग तब/आर्य करता है।" (पृ. ६०) - "कृपाण कृपालु नहीं हैं।" (पृ. ७३)
“प्रत्येक व्यवधान का/सावधान होकर/सामना करना नूतन अवधान को पाना है,/या यों कहें कि
अन्तिम समाधान को पाना है।" (पृ.७४) खण्ड -दो - 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं' में एक पंक्ति की सूक्तियाँ अपेक्षाकृत कम हैं। इन सूक्तियों में आचार्यजी ने जीवन का सार डाल दिया है :
"बदले का भाव वह दल-दल है/कि जिसमें/बड़े-बड़े बैल ही क्या, बल-शाली गज-दल तक/बुरी तरह फंस जाते हैं और गल-कपोल तक/पूरी तरह धंस जाते हैं।” (पृ. ९७) “दम सुख है, सुख का स्रोत/मद दुःख है, सुख की मौत !" (पृ. १०२) "मात्रानुकूल भले ही/दुग्ध में जल मिला लो दुग्ध का माधुर्य कम होता है अवश्य ! जल का चातुर्य जम जाता है रसना पर!" (पृ. १०९) "अपने को छोड़कर/पर-पदार्थ से प्रभावित होना ही/मोह का परिणाम है और/सब को छोड़कर/अपने आप में भावित होना ही मोक्ष का धाम है।" (पृ. १०९-११०) "जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव – सम्पादन हो सही साहित्य वही है ।” (पृ. १११) “आग का योग पाता है/शीतल-जल भी,/शनैः शनैः जलता-जलता,/उबलता भले ही।" (पृ. १३१) "आधा भोजन कीजिए/दुगुणा पानी पीव ।
तिगुणा श्रम/चउगुणी हँसी/वर्ष सवा सौ जीव!" (पृ. १३३) 0 "स्थित-प्रज्ञ हँसते कहाँ ?/मोह-माया के जाल में
आत्म-विज्ञ फँसते कहाँ ?" (पृ. १३४) 0 "दुःस्वर हो या सुस्वर/सारे स्वर नश्वर हैं।" (पृ. १४३)