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458 :: मूकमाटी-मीमांसा
0 "आयास से डरना नहीं/आलस्य करना नहीं !" (पृ. ११) 0 "किसी कार्य को सम्पन्न करते समय/अनुकूलता की प्रतीक्षा करना
सही पुरुषार्थ नहीं है।" (पृ. १३) ० मीठे दही से ही नहीं,/खट्टे से भी/समुचित मन्थन हो
नवनीत का लाभ अवश्य होता है।" (पृ. १३-१४) __ “संघर्षमय जीवन का/उपसंहार/नियमरूप से/हर्षमय होता है।" (पृ. १४) ० "दुःख की वेदना में/जब न्यूनता आती है
दुःख भी सुख-सा लगता है।” (पृ. १८) "विचारों के ऐक्य से/आचारों के साम्य से/संप्रेषण में
निखार आता है,/वरना/विकार आता है !" (पृ. २२) ० "कुछ अपवाद छोड़कर/बाहरी क्रिया से/भीतरी जिया से
सही-सही साक्षात्कार/किया नहीं जा सकता।” (पृ. ३०) 0 “पीड़ा की अति ही/पीड़ा की इति है/और
पीड़ा की इति ही/सुख का अर्थ है।" (पृ. ३३) "विषयी सदा/विषय-कषायों को ही बनाता/अपना विषय ।" (पृ. ३७)
“दया का होना ही/जीव-विज्ञान का/सम्यक् परिचय है।" (पृ. ३७) 0 “वासना का विलास/मोह है,/दया का विकास/मोक्ष है।" (पृ. ३८)
"वर्ण का आशय/न रंग से है/न ही अंग से
वरन्/चाल-चरण, ढंग से है।" (पृ. ४७) 0 “पापी से नहीं/पाप से/पंकज से नहीं,/पंक से/घृणा करो।" (पृ. ५०-५१) • “नर से/नारायण बनो/समयोचित कर कार्य ।” (पृ. ५१) 0 "लघुता का त्यजन ही/गुरुता का यजन ही/शुभ का सृजन हैं।" (पृ. ५१) 0 “संयम की राह चलो।" (पृ. ५६) 0 "राही बनना हो तो/हीरा बनना है।" (पृ. ५७) 0 "राख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?" (पृ. ५७) 0 "बात का प्रभाव जब/बल-हीन होता है