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________________ भारतीय मनीषा की तत्त्व-सृष्टि : 'मूकमाटी' डॉ. चक्रधर नलिन 'मूकमाटी' बीसवीं शती का सर्वश्रेष्ठ यथार्थपरक दार्शनिक पृष्ठभूमि पर रचित पहला महाकाव्य है, जो भोगवादी संस्कृति पर गहरे कुठाराघात करता है। यह निश्चय ही आधुनिक भारतीय सांस्कृतिक सम्पदा की अविस्मरणीय उपलब्धि है। आचार्य विद्यासागर ने माटी के मूक सन्देश को विश्व मानवतावादियों के समक्ष सोद्देश्य पूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है, जो भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि है । कृति चरम भव्यता की प्रतीति है । रचनाकार ने सफलतापूर्वक जीवन-मुक्ति की मंगल यात्रा और जीव को अलौकिक तथा भेदहीन स्थिति तक काव्यधारा के माध्यम से पहुँचाया है। इसमें न केवल काव्य तत्त्वादर्श है वरन् अनन्त, अबाध, शाश्वत संगीतिक नाद भी है जो साधक की जीवन्तता का प्रकटीकरण है। __ भारत में महाकाव्यों की अक्षुण्ण परम्परा के कीर्तिमानों में कविश्रेष्ठ वाल्मीकि कृत 'वाल्मीकि रामायण, व्यास कृत 'महाभारत', कालिदास कृत 'रघुवंश', तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस', चन्दबरदाई का 'पृथ्वीराज रासो, केशवदास की 'रामचन्द्रिका, अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध कृत 'प्रिय प्रवास, जयशंकर प्रसाद विरचित 'कामायनी, मैथिलीशरण गुप्त प्रणीत 'साकेत, रश्मिरथी' (प्रबन्ध काव्य) दिनकर कृत, 'उर्मिला' रचनाकार बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' तथा सुमित्रानन्दन पन्त कृत 'लोकायतन' एवं रामप्रसाद मिश्र विरचित 'पुरुषोत्तम' आदि प्रमुखतम हैं, जिनमें 'मूकमाटी' एक नव्यलोकाधारित परिणति है। माटी और कुम्भकार, शिष्य और गुरु के माध्यम से रचनाकार परम तत्त्व उद्घाटन करता है तथा स्व-आत्मचिन्तन की निधि प्रस्तुत काव्य कृति में समाहित करता है। इसमें जीवन के अनन्त अनुभवों का दर्शन तथा रूपान्तरण है। इसमें काव्य की अन्तरंगता रूपायित है । प्रथम खण्डानुसार माटी मिश्रित तत्त्वों से भरी पड़ी है जिसे कुम्भकार परिशोधन कर उसे विशुद्ध करता है । यह मौलिक वर्णलाभ क्रुद्धता की प्रतिहति है । द्वितीय खण्डानुसार कुम्भकार द्वारा कुदाली से इसे खोदे जाने पर एक काँटे को आई चोट प्रतिशोधात्मक रूप ग्रहण करती है । कवि के अनुसार : "क्रोधभाव का शमन हो रहा है ।/पल - प्रतिपल/पाप-निधि का प्रतिनिधि बना/प्रतिशोध-भाव का वमन हो रहा है। पल - प्रतिपल/पुण्य-निधि का प्रतिनिधि बना/बोध-भाव का आगमन हो रहा है" (पृ. १०६)। ज्ञान और बोध का चैतन्य भाव मानस को जागृत करता है । तृतीय खण्ड में रचनाकार ने साहित्यबोध के नवादर्श स्थापित किए हैं। संगीत स्वर लहरी की भावोद्रेकता तथा प्राणमयता है । प्रस्तुत कृति भारतीय मनीषा की तत्त्व-सृष्टि है । तृतीय खण्डानुसार मानव कल्याण, लोक मंगल ही काव्य में इष्ट है जो रचनाकार के अनुसार मन, वचन, काय की पावनता पर निर्भर है। इस में माटी की विकास यात्रा के द्वारा पुण्य कार्यों से उसकी विशिष्ट प्राप्ति का उल्लेख है । भौतिक सत्ता पर परम अध्यात्म की विजय इस खण्ड का अभिप्राय है। चतुर्थ खण्ड में माटी की सृजन कथा, रूप परिवर्तनशीलता को प्रतिबिम्बित करती है । कुम्भकार ने सर्जक बनकर माटी को विविध रूपों में ढाल कर उसे सर्जनात्मक छवि प्रदान की है। समीक्ष्य कृति विचार प्रधान महाकाव्य है जो होमर के 'ईलियड', 'ओडिसी', वर्जिल के ‘एनीड', दाँते की 'डिवाइन कामेडी', फिरदौसी के 'शाहनामा', मिल्टन के 'पैराडाइज लॉस्ट' तथा वर्ड्सवर्थ के 'प्रिल्यूड जैसे आत्मपरक महाकाव्य की परम्परा को आगे बढ़ाती है । 'मूकमाटी' में जहाँ भारतीय दार्शनिक चिन्तना है वहीं आत्मपरकता का वैभव भी । इस प्रकार के महाकाव्य बहुत कम हैं जो भारतीय सांस्कृतिक तथा दार्शनिक पृष्ठभूमि का जयघोष करते हैं। रचना की भाषा रचनाकार के कन्नड़ बोध के कारण भाव सम्प्रेषण में हलकी बैठती है किन्तु अर्थ वहनता में
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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