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'मूकमाटी' में मुखर चिन्तन
डॉ. हनुमन्त नायडू 'मूकमाटी' जैन आचार्य विद्यासागर का माटी को केन्द्र बनाकर लिखा गया महाकाव्य है । यह चार खण्डों में विभाजित है । प्रथम खण्ड 'संकर नहीं : वर्ण-लाभ' है जिसमें बताया गया है कि कुम्भकार मंगल घट के निर्माण की कल्पना करता है। इसके लिए कुम्भकार मिट्टी का परिशोधन करता है। कंकरों से मिली वर्ण संकर मिट्टी को वह एक वर्ण देता है । द्वितीय खण्ड 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं है। इसमें बताया गया है कि कुम्भकार कुदाली से मिट्टी खोदता है। इस प्रयास में कुदाली एक काँटे को लगती है। काँटा बदला लेना चाहता है । माटी के समझाने पर
और कुम्भकार की शालीनता के कारण वह प्रतिशोध की भावना से उबरता है । इसी खण्ड में नौ रसों की परिभाषा, शृंगार रस की मौलिक व्याख्या तथा विभिन्न ऋतुओं का वर्णन है। कवि ने यह भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि उच्चारण शब्द है, शब्द का सम्पूर्ण अर्थ समझना बोध है तथा इस बोध को आचरण में उतारना शोध है । तृतीय खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' में विचारक कवि ने यह स्पष्ट किया है कि मन, वचन तथा काया की निर्मलता से किए गए लोक कल्याण के शुभ कार्यों से पुण्य तथा क्रोध, मान, माया, लोभ आदि से वशीभूत होकर किए गए कार्यों से पाप होता है । माटी की विकास कथा के साथ-साथ यहीं मेघ द्वारा कुम्भकार के आंगन में मोती बरसाने का वर्णन है। कुम्भकार वह मुक्ता-राशि राजा को सौंप देता है। धरती के यश को देखकर सागर के हृदय में उत्पन्न क्रोध का भी वर्णन इस खण्ड में है। सागर क्रोधित होकर धरती पर भीषण वर्षा कराता है, ओले बरसवाता है तथा वज्रप्रहार कराता है। इस प्रकार कवि को प्रकृति के भद्र रूप का वर्णन करने का अवसर मिल गया है। चतुर्थ खण्ड 'अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' है, जिसमें बताया गया है कि कुम्भकार मिट्टी के घट को आग में पकाने के बाद बाहर निकालता है तथा श्रद्धालु नगर सेठ को देता है ताकि उसके जल से गुरु के चरण धोए जा सकें, प्यास बुझाई जा सके । नगर सेठ का सेवक घट को सात बार बजा कर लेता है। यहाँ संगीत के सात स्वरों को कवि ने नया अर्थबोध दिया है। नगर सेठ उस मंगल घट के जल से गुरु के चरण धोता है । इस सन्दर्भ में अनेक जिज्ञासाओं का शमन तथा विभिन्न लौकिक और पारलौकिक विषयों का वर्णन है । स्वर्ण कलश मिट्टी के घट एवं सेठ परिवार को मारने हेतु आतंकवादियों को भेजता है। अन्त में मिट्टी के घट की सहायता से ही नगर सेठ का परिवार नदी पार करके आतंकवाद से बचता है।
जहाँ तक महाकाव्यत्व का प्रश्न है, ग्रन्थ के पक्ष और विपक्ष में बहुत कुछ कहा जा सकता है। इस महाकाव्य की कथा लोकप्रसिद्ध नहीं है। कवि ने किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के स्थान पर माटी को केन्द्र में रखकर इसका सृजन किया है। आज के युग में महाकाव्य के क्षेत्र में अनेकानेक नए प्रयोग किए गए हैं जिनमें महाकाव्य के परम्परागत सभी लक्षणों का निर्वाह नहीं किया गया है, यह एक ऐसा ही महाकाव्य है। कवि ने इस रचना में निर्जीव तथा मूक वस्तुओं को मुखर किया है तथा उनके संवादों के द्वारा ही पूरी कथा कहने का प्रयत्न किया है । कवि ने महाकाव्य के लिए आवश्यक प्रकृति के विभिन्न रूपों तथा विभिन्न रसों का चित्रण भी यथास्थान किया है । कवि ने 'स्टार वार' तथा आतंकवाद जैसी नए युग की समस्याओं को भी इस ग्रन्थ में स्थान दिया है। कवि धर्माचार्य है, फलस्वरूप इस ग्रन्थ में चिन्तन, दर्शन और बौद्धिकता का प्रमाण अधिक मिलता है।
0 "हर प्राणी सुख का प्यासा है/परन्तु,/रागी का लक्ष्य-बिन्दु अर्थ रहा है
और/त्यागी-विरागी का परमार्थ !" (पृ. १४१) "जाते-जाते हे स्वामिन् !/एक ऐसा सूत्र दो हमें/जिस में बंधे हम