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________________ 396 :: मूकमाटी-मीमांसा न्याय-व्यवस्था में इतना विलम्ब हो जाता है कि न्याय मिलने पर व्यक्ति को उसका सुख या लाभ नहीं मिल पाता । वह न्याय उसे न्याय न लगकर, अन्याय-सा लगता है : "आशातीत विलम्ब के कारण/अन्याय न्याय-सा नहीं न्याय अन्याय-सा लगता ही है। और यही हुआ इस युग में इसके साथ।" (पृ. २७२) अर्थ का आकलन और संकलन ही इस युग में महत्त्वपूर्ण हो गया है । कला जिसका प्रयोजन आनन्द था, अब अर्थ संकलन मात्र ही रह गया है : "सकल कलाओं का प्रयोजन बना है/केवल अर्थ का आकलन-संकलन ।” (पृ. ३९६) धन के अनुचित मोह और महत्त्व के कारण कवि पूछते हैं : "धन जीवन के लिए/या जीवन धन के लिए ?" (पृ. १८०) यद्यपि काव्य का कथापटल सीमित है, प्रकृतिचित्रण के लिए उचित अवसर नहीं है, फिर भी कवि ने प्रकृति के उपादानों को महाकाव्य के पात्र बनाकर इसके लिए अवसर पा लिए हैं। आरम्भ में ही प्राची और सूर्य माँ की गोद में लेटे अबोध बालक का रूप लेकर आते हैं। प्रभात रात को साड़ी भेंट करता है । भाई की दी हुई साड़ी पहन कर मन्द मुस्कान के साथ रात प्रभात को सम्मानित करती है, जो सुन्दर और मौलिक उपमा है : "...हर्षातिरेक से/उपहार के रूप में/कोमल कोपलों की/हलकी आभा-धुली हरिताभ की साड़ी/देता है रात को ।/इसे पहन कर/जाती हुई वह प्रभात को सम्मानित करती है/मन्द मुस्कान के साथ"! भाई को बहन सी।" (पृ. १९) सरिता तट का फेन मानो दही छलकाती हुई मंगल कलशियाँ हैं। धरती के तृणबिन्दु मानों उसके हृदय में उमड़ी करुणा है : "तृण-बिन्दुओं के मिष/उल्लासवती सरिता-सी धरती के कोमल केन्द्र में/करुणा की उमड़न है।" (पृ. २०) दूसरे खण्ड के आरम्भ में शीत की भयावहता का वर्णन है। डाल-डाल पर हुआ हिमपात, पीली पड़ती लतिकाएँ, ठण्ड से बिना प्रशिक्षित परन्तु अभ्यासी-से बजते दाँत, दिन की सिकुड़न तथा प्रभाकर की डरी बिखरी प्रखरता जहाँ देखो वहाँ हिम की महिमा महक रही है। अनुप्रास से कवि को अत्यन्त मोह है। शीतकाल की भौरे-सी काली, शनि की खान तथा भय, मद और पापों की जननी रात दुगुनी हो गई है : "महि में महिमा हिम की महकी,/...घनी अलिगुण-हनी शनि की खनी सी."/भय-मद अघ की जनी।" (पृ. ९१)
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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