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________________ 'मूकमाटी': ग्रन्थिभंजक सर्जना ___ डॉ. (श्रीमती) कृष्णा अग्निहोत्री 'धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म' सामान्य जन-जीवन में एक उलझाव बनकर रह गए हैं, आम व्यक्ति अपनी जिज्ञासा को बाँट नहीं पाता, ऐसे उलझाव व ग्रन्थियों को तोड़ देने वाला महाकाव्य 'मूकमाटी' एक अनुपम प्रयास है । अपने काव्य द्वारा दिशाभ्रम को तोड़ने का महामुनि का प्रयास सार्थक व सराहनीय है। 'माटी' को सार्थक प्रतीक बना कर भव्यता तक पहुँचाना एक कल्याणकारी कार्य है । 'शिव' ही सत्य एवं उद्देश्यपूर्ण कल्याण हैं और मानव की कल्याण योजना अभिव्यक्ति - इस महाकाव्य में अपनी सम्पूर्ण प्रासंगिकता से अभिव्यक्त है: "मेरा नाम सार्थक हो प्रभो!/यानी/'गद' का अर्थ है रोग 'हा' का अर्थ है हारक/मैं सबके रोगों का हन्ता बनूं,/.."बस, और कुछ वांछा नहीं/गद-हा गदहा !" (पृ. ४०) मानव जीवन के लिए इससे श्रेष्ठ और क्या कर्म हो सकता है ? संघर्ष बिना हमारी यह मानव मिट्टी देह साधारण है । संघर्ष टकराव ही उसे निखारते हैं, संघर्ष हमें नई अनुभूतियाँ प्रदान करते हैं और हम अपने आत्मविश्लेषण द्वारा अपने रोगों (विकारों) को पहचानकर, उन्हें दूर कर सकते हैं। शुद्ध आत्मा ही मंगल सोच, मंगल कार्य में डूब सकती है, आस्थाओं को समेट सकती है : "...जीवन का/आस्था से वास्ता होने पर/रास्ता स्वयं शास्ता होकर सम्बोधित करता साधक को/साथी बन साथ देता है।" (पृ. ९) असत्य की पहचान से ही 'सत्य' का उद्घाटन हो जाता है। आज का युग ऐसा समय है कि हम अपने आसपास के झूठ को नहीं पहचान पाते । देश में व्याप्त अनाचार हमारे मूल्यों को ध्वंस कर रहे हैं और मनुष्य तटस्थ, पलायनवादी बन विकारों को ही साधन बनाना सफलता की सीढ़ी मानता है । महामुनि का आधुनिक युग को दृढ़ एवं सम-सामयिक यह सन्देश है : 0 "पतन पाताल का अनुभव ही/उत्थान-ऊँचाई की आरती उतारना है !" (पृ. १०) 0 "प्रतिकार की पारणा/छोड़नी होगी, बेटा !/अतिचार की धारणा तोड़नी होगी, बेटा !/अन्यथा,/कालान्तर में निश्चित ये दोनों/आस्था की आराधना में/विराधना ही सिद्ध होंगी!" (पृ. १२) धर्म की वैज्ञानिक, सहज, सरल व्याख्या मुनिश्री ने उपलब्ध कराई है कि जो विषय-कषायों को त्याग कर जितेन्द्रिय, जित-कषाय और विजितमना हो कर, पूरी आस्था व विश्वास द्वारा आत्मसाधना में लीन होता है, वही आत्मा में छुपे ईश्वरत्व का साक्षात्कार कर आत्मिक सुख प्राप्त कर सकता है। अपने शरीर की माटी को संवारने हेतु प्रकाश की अनिवार्यता है और सच्चे कर्मरूपी चक्र ही माटी को संवारने
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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