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मूकमाटी-मीमांसा
फिर जो भी निर्णीत हो, / हो अपना, लो, अपनालो उसे !” (पृ. १२४)
यमक के अन्य उदाहरण पृष्ठ संख्या ९७, १३४, १७६, १८२, २३०, २३१, २३४, २३५, ३२४, ३५४, ३६४, ३८१, ३८८, ३९३, ४०८, ४१३, ४३२, ४४० एवं ४७७ पर भी उपलब्ध हैं ।
रूपक :
"पाँखुरी-रूप अधर - पल्लव/ फड़फड़ाने लगे, क्षोभ से ।” (पृ. २६०)
पृष्ठ संख्या ४, १२, २६५, २७९, २८५, ४२१, ४४७ एवं ४५२ की रूपक की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । रूपक- ० " और देखो ना ! / माँ की उदारता - परोपकारिता अतिशयोक्ति अपने वक्षस्थल पर / युगों से चिर से / दुग्ध से भरे दो कलश ले खड़ी है।” (पृ. ४७६)
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वीप्सा : व्यतिरेक :
"स्मृतियाँ ताजी हो आईं / पवन के परस पाकर सरवर तरंगायित हो आया । " (पृ. ४८१ )
"सही-सही समझ में नहीं आता ।" (पृ. २३४)
" ( " और/ निराश हो लौटता है) / यानी'
भ्रमर से भी अधिक काला है /यह पहला बादल-दल ।” (पृ. २२८)
पृष्ठ संख्या २००, ३२४, ३७० एवं ४११ पर भी व्यतिरेक के उदाहरण द्रष्टव्य हैं ।
श्लेष :
" मन का बल वह / मन - सा रहता है ।" (पृ.९६)
सन्देह :
समासोक्ति :
पृष्ठ संख्या ८, ९१, २३०, ३२१, ३२४, ३४७ और ३६९ पर भी श्लेष के उदाहरण से अलंकृति हैं । "यह सन्ध्याकाल है या / अकाल में काल का आगमन !” (पृ. २३८) “मुँदी आँखें खुलती हैं, / जिस भाँति / प्रभाकर के कर- परस पाकर अधरों पर मन्द-मुस्कान ले / सरवर में सरोजिनी खिलती हैं । " (पृ. २१५ ) स्वभावोक्ति : “एक हाथ में कुम्भ लेकर, / एक हाथ में लिये कंकर से कुम्भ को बजा-बजाकर / जब देखने लगा वह।" (पृ. ३०३ )
D “ घर के सब बाल-बालाओं को / भीतर रहने की आज्ञा मिली है और/ बिना बोले बैठने को बाध्य किया गया है,
फिर भी, बीच-बीच में, / चौखट के भीतर से या खिड़कियों से
एक-दूसरे को आगे-पीछे करते / बाहर झाँकने का प्रयास चल रहा है । "
(पृ. ३४०-३४१)
आचार्य विद्यासागर द्वारा प्रणीत महाकाव्य 'मूकमाटी' का मैंने आद्योपान्त अध्ययन किया है । बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लिखे हिन्दी महाकाव्यों में इसका विशिष्ट स्थान है । कवि आचार्य के 'स्वान्तः सुखाय' होने पर