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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 305 "जो/मह यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है महिला कहलाती वह ।” (पृ. २०२) नारी के विभिन्न रूपों का बड़ा उदात्त, मंगलमय, शुभंकर चित्र कवि ने 'मूकमाटी' में खींचा है। भारतीय नारी के प्रति सन्त कवि की सहज सहानुभूति है। हमसे, आप से, सबसे कवि का आग्रह है : "न्याय की वेदी पर/अन्याय का ताण्डव-नृत्य/मत करो...।" (पृ. ४१९) आतंकवाद के सम्बन्ध में भी कवि की अवधारणा है : "जब तक जीवित है आतंकवाद शान्ति का श्वास ले नहीं सकती/धरती यह ।" (पृ. ४४१) कवि की दृष्टि सर्वत्र है । जन प्रतिनिधियों पर उसकी यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी कितनी सार्थक है : "चोर इतने पापी नहीं होते/जितने कि चोरों को पैदा करने वाले।” (पृ. ४६८) और आगे की पंक्तियों में वह कहता है : "सत्य का आत्म-समर्पण/और वह भी/असत्य के सामने ? हे भगवन् !/यह कैसा काल आ गया,/क्या असत्य शासक बनेगा अब?" (पृ. ४६९) इस अध्यात्मवादी काव्य दर्शन में मैंने आधुनिक समाज के यथार्थ-बोध को खोजने का प्रयास मात्र किया है । सन्त कवि ने रूपक के माध्यम से 'मूकमाटी' में चेतना ला दी है। कवि के पास दिव्य दृष्टि है, वह संसार से परे भी देख लेता है। मेरी दृष्टि धुंधली है और सीमित भी। वह इस संसार को भी भलीभाँति देख-परख नहीं पाती । अन्त में मैं कवि की इन पंक्तियों के साथ इस आलेख को समाप्त करता हूँ : "संहार की बात मत करो,/संघर्ष करते जाओ! हार की बात मत करो,/उत्कर्ष करते जाओ!" (पृ. ४३२) कमाटी
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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