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________________ 296 :: मूकमाटी-मीमांसा चिन्तन और उपदेशों की बहुलता है। ये उपदेश कहीं नदी, कहीं धरित्री तो कहीं अग्नि, कुम्भकार, कुम्भ, अवाँ, श्रीफल, घट, मच्छर, मत्कुण, झारी, कलश, कहीं साधु के रूप में वर्णित हैं । 'मूकमाटी' की संवाद योजना अत्यन्त चमत्कारिक, प्रभविष्णु है । उसके संवाद गत्यात्मक, लघु-दीर्घ, दर्शन और अलंकार वक्रता से ही नहीं, अपितु आज के चाकचक्य जीवन पर कटु सत्य एवं यथार्थपूर्ण व्यंग्योक्ति भी करते हैं । ऐसे अनुभूति पक्ष के साथ अभिव्यक्ति पक्ष का आकलन अत्यावश्यक है क्योंकि भाव या विचारों का संवहन अभिव्यक्ति पक्ष से ही होता है, जिसमें भाषा प्रमुख है। भाव यदि साध्य हैं तो भाषा साधन है। 'मूकमाटी' में प्रयुक्त भाषा में उर्दू, फारसी तथा यत्र-तत्र तद्भव शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। 'मूकमाटी' का वैशिष्ट्य भाषा की दृष्टि से अप्रतिम है । इसमें शताधिक ऐसे शब्दों का प्रयोग है जिनका यत्किंचित् परिवर्तन करके या वर्ण - व्यत्यय रूप में प्रयुक्त कर लेखक ने अर्थ चारुता, वक्रता का साभिप्राय उपयोग किया है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं : O O O O इस तरह की मनोवृत्ति सभंग श्लेष, सभंग यमक या यमकाभास के अन्तर्गत आती है, जो शब्दालंकार के प्रमुख भेद हैं। कुछ उदाहरण अनुप्रास के भी द्रष्टव्य हैं : O "तुम में पायस ना है / तुम्हारा पाय सना है ।" (पृ. ३६४) "मर, हम 'मरहम' बनें..!" (पृ. १७५ ) 66 "मैं दो गला" /... 'मैं' यानी अहं को दो गला - कर दो समाप्त ।" (पृ. १७५ ) 66 O 'नारी' / यानी - / 'न अरि' नारी / अथवा ये आरी नहीं हैं / सो नारी!" (पृ. २०२ ) 66 'कु' यानी पृथिवी / 'मा' यानी लक्ष्मी / और 'री' यानी देनेवाली |" (पृ. २०४) 0 ... अर्थालंकारों में उपमा, रूपक, प्रतीप, व्यतिरेक, उत्प्रेक्षा का बहुल प्रयोग हुआ है । अर्थालंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप में ही हुआ है, जब कि शब्दालंकारों के प्रयोग में कवि को आयास करना पड़ा है : उपमा : O " जल में जनम लेकर भी / जलती रही यह मछली जल से, जलचर जन्तुओं से ।” (पृ. ८५) "चाँद की चमकती चाँदनी भी चित्त से चली गई उछली-सी कहीं ।" (पृ. ८५) " भवन - भूत-भविष्य - वेत्ता / भगवद्-बोध में बराबर भास्वत है ।" (पृ. ११६) "स्वाभिमानी स्वराज्य - प्रेमी / लोहित - लोचन उद्भट - सम या / तप्त लौह- पिण्ड पर / घन- प्रहार से, चट-चट छूटते स्फुलिंग अनुचटन - सम ।” (पृ.२४३) " दृढ़मना श्रमण - सम सक्षम / कार्य करने कटिबद्ध हो ।” (पृ. २४३ ) " शान्त माहौल भी खौलने लगता है / ज्वालामुखी - सम । " (पृ. १३१ )
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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