________________
262 :: मूकमाटी-मीमांसा स्वस्तिक : "स्वयं का प्रतीक, स्वस्तिक अंकित करता है-/'स्व' की उपलब्धि हो सबको
इसी एक भावना से ।/और/प्रति स्वस्तिक की चारों पाँखुरियों में कश्मीर-केसर मिश्रित चन्दन से/चार-चार बिन्दियाँ लगा दीं जो बता रहीं संसार को, कि/संसार की चारों गतियाँ सुख से शून्य हैं। इसी भाँति,/प्रत्येक स्वस्तिक के मस्तक पर चन्द्र-बिन्दु समेत,/ओंकार लिखा गया/योग एवं उपयोग की स्थिरता हेतु ।
योगियों का ध्यान/प्राय: इसी पर टिकता है ।" (पृ. ३०९) ___ आचार्य विद्यासागरजी ने नए कवियों जैसे प्रयोग इस महाकाव्य में करके प्रयोगवादी कवि-धर्म का निर्वाह भी किया है । एक उदाहरण प्रस्तुत है :
“संसार ९९ का चक्कर है/यह कहावत चरितार्थ होती है इसीलिए/भविक मुमुक्षुओं की दृष्टि में/९९ हेय हो और
ध्येय हो ९/नव-जीवन का स्रोत !" (पृ. १६७) आचार्यश्री ने इस काव्य में रस आदि के अतिरिक्त साहित्य की सैद्धान्तिक चर्चा भी की है। एक स्थान पर वे साहित्य का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखते हैं :
“हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव-सम्पादन हो
सही साहित्य वही है।" (पृ. १११) साहित्य के क्षेत्र में सम्प्रेषण का बड़ा महत्त्व है । इस सम्बन्ध में आचार्यश्री ने लिखा है :
"लक्ष्य की ओर बढ़ना ही/सम्प्रेषण का सही स्वरूप है... सम्प्रेष्य के प्रति/कभी भूलकर भी/अधिकार का भाव आना सम्प्रेषण का दुरुपयोग है,/वह फलीभूत भी नहीं होता! ...प्राथमिक दशा में/सम्प्रेषण का साधन/कुछ भार-सा लगता है निस्सार-सा लगता है/और/कुछ-कुछ मन में तनाव का वेदन भी होता है।” (पृ. २२-२३)
पृ.३. पयरचलता है.... - - - ... मनसे भी।
1: 2
6LATE