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________________ 256 :: मूकमाटी-मीमांसा परन्तु/मूल में कभी/फूल खिले हैं ?" (पृ. १०) “आस्था के विषय को/आत्मसात् करना हो/उसे अनुभूत करना हो तो/साधना के साँचे में/स्वयं को ढालना होगा सहर्ष !" (पृ. १०) “साधना के क्षेत्र में/स्खलन की सम्भावना/पूरी बनी रहती है ।" (पृ. ११) "आयास से डरना नहीं/आलस्य करना नहीं !" (पृ. ११) "प्रतिकार की पारणा/छोड़नी होगी, बेटा !/अतिचार की धारणा तोड़नी होगी, बेटा !/अन्यथा,/कालान्तर में निश्चित/ये दोनों आस्था की आराधना में/विराधना ही सिद्ध होंगी !" (पृ. १२) सन्त साहित्य में संगति का बड़ा महत्त्व बताया गया है। नामदेव ने संगति को गोविन्द प्राप्ति का मार्ग बताया है । कबीर के अनुसार संगति के प्रभाव से कर्मानुसार फल मिलता है । रविदास मानते हैं कि साधु संगति बिना भक्ति नहीं। दादू ने संगति को अमोल रत्न बताया है। मलूकदास कहते हैं कि साधु संगत का समय बीता जा रहा है । सुन्दरदास ने इसे दुर्लभ बताया है । नानक इस के बिना जन्म ही निरर्थक मानते हैं । महाकाव्यकार आचार्य विद्यासागरजी के अनुसार : "जैसी संगति मिलती है/वैसी मति होती है मति जैसी, अग्रिम गति/मिलती जाती मिलती जाती.. और यही हुआ है/युगों-युगों से/भवों-भवों से !" (पृ. ८) कबीर के अनुसार आत्म संयम के बिना सफलता सम्भव नहीं। दादूदयाल का मत है कि संयम से सिरजनहार की प्राप्ति हो सकती है। रविदास कहते हैं कि इन्द्रिय का संयम आत्मविश्वास उत्पन्न करता है । आचार्य विद्यासागरजी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है : 0 “संयम के बिना आदमी नहीं/यानी/आदमी वही है जो यथा-योग्य/सही आदमी है ।" (पृ. ६४ ) 0 “नियम-संयम के सम्मुख,/असंयम ही नहीं, यम भी/अपने घुटने टेक देता है, हार स्वीकारना होती है/नभश्चरों सुरासुरों को !" (पृ. २६९) प्रतिशोध द्वारा शान्ति सम्भव नहीं है । वह तो एक आग है, जो जलाना जानती है । कवि के शब्दों में : "बदले का भाव वह अनल है/जो/जलाता है तन को भी, चेतन को भी भव-भव तक!/बदले का भाव वह राहु है/जिसके/सुदीर्घ विकराल गाल में छोटा-सा कवल बन/चेतनरूप भास्वत भानु भी अपने अस्तित्व को खो देता है ।" (पृ. ९८) कबीर के अनुसार किसी के अपराध को क्षमा करना ऊँचे व्यक्तित्व का द्योतक है। रविदास ने क्षमाशीलता साधु के लिए आवश्यक मानी है । दादूदयाल ने तो इसे मोक्ष का मार्ग स्वीकार किया है। सुन्दरदास ने इसे अनाहदवाद में स्थान
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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