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________________ 214 :: मूकमाटी-मीमांसा सहजता से प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थ में अध्यात्म, संस्कृति और परम्परागत मान्यताओं की आदर्श रूप में स्थापना की गई है । यद्यपि 'मूकमाटी' आध्यात्मिक महाकाव्य प्रतीत होता है तथापि इसमें संस्कृति, युग चेतना, युग-बोध, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, लोकतान्त्रिक, समाजवाद एवं आतंकवाद आदि समस्याओं का अद्भुत संयोजन हुआ है | अध्यात्म को आचार्य ने स्वस्थ ज्ञान के रूप में निर्देशित किया है । संस्कृति का प्रस्तुतीकरण भी 'मूकमाटी' में आदर्श रूप में हुआ है। भारतीय संस्कृति की त्यागात्मक प्रवृत्ति की प्रशंसा के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति में अनुस्यूत अर्थ की प्रधानता की निन्दा की गई है। सम्पूर्णता में देखा जाए तो 'मूकमाटी' में भारतीय सांस्कृतिक आदर्शों का निरूपण हुआ है। 'मानव को मानव से जोड़ने' का तथा 'आशा ही जीवन है' के सिद्धान्त के आधार पर मानवतावाद की स्थापना का स्तुत्य प्रयास किया गया है। श्रम के महत्त्व की स्थापना कवि ने 'श्रम करे' सो श्रमण' (पृ. ३६२) कहकर की है। ऐसी श्रमण संस्कृति - मानव संस्कृति से युग को संस्कारित करने की दृष्टि है इस महाकाव्य की । संस्कृति की स्थापना कवि ने इन भावों में कहकर की है और इस दृष्टिकोण से यह महाकाव्य एक विशिष्ट उपलब्धि जान पड़ती है । "कृति रहे, संस्कृति रहे/आगामी असीम काल तक जागृत "जीवित" अजित ।” (पृ. २४५ ) 'मूकमाटी' विश्व जीवन को प्रेरणा प्रदान करनेवाला मानवतावादी सन्देश प्रसारित करता है । यही सन्देश सम्पूर्ण मानव जाति की धरोहर है । इस महाकाव्य में आचार्यवर के द्वारा मानवतावाद की स्थापना और चिन्तन-मनन व्यापक है । आचार्य का दृष्टिकोण एक दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक का दृष्टिकोण प्रतीत होता है। आचार्यवर ने मनुष्य की वेदना को व्यापक रूप में मुखरित किया है। उनकी दृष्टि में मानवता की विजय ही मानव संस्कृति की विजय है । समग्र विवेचन के पश्चात् यदि यह कहा जाय कि गणितीय ढंग से भले ही 'मूकमाटी' को महाकाव्यों के अन्तर्गत सम्मिलित न किया जाय, परन्तु अन्य सभी दृष्टिकोणों से यह महाकाव्य की गरिमा का पूर्णतया परिपालन करता है । मात्र सर्गबद्ध होना, नायक का उच्च कुलोत्पन्न अथवा क्षत्रिय होना या ऐसे ही अन्य नियम- परिनियम, विधिविधान महाकाव्य की महत्ता को घटानेवाले होते हैं । महाकाव्य का उद्देश्य 'चतुर्वर्गफलप्राप्ति:' अर्थात् अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति है और नहीं तो कम-से-कम एक की तो प्राप्ति होनी ही चाहिए। इसकी प्राप्ति इस महाकाव्य पददलिता, उपेक्षिता माटी को होती है। साथ ही, प्रस्तुत महाकाव्य मन पर एक उदात्त प्रभाव छोड़ता है जो महाकाव्य का सर्वमान्य गुण कहा जाता है। युग-युग तक जीने की क्षमता इस कृति में विद्यमान है और यह समाज और राष्ट्र के लिए नई, स्वस्थ दिशा प्रदान करने में भी पूर्णतया समर्थ और सक्षम है। में पृष्ठ २५८-२५८ फूल ने पवन को -... और कोई प्रयोजना नहीं--- हाँ !
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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