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मूकमाटी-मीमांसा :: 175 प्रलय-काल का दर्शन/तुम्हें करना है अभी।” (पृ. ४२१) सेठ के परिवार में आतंक छा जाता है और पूरा परिवार उस घर से भाग निकलता है, पीछे के रास्ते से । कुम्भ ने यही परामर्श दिया था, क्योंकि सेठ पर हमला होने पर आस-पास की निरपराध जनता भी आतंकवाद का शिकार हो सकती थी।
यहाँ से कथा गति पकड़ती है। अपने मार्गदर्शक कुम्भ को हाथ में लिए सेठ परिवार, वन की ओर प्रयाण करता है। वन में वंश वृक्षों की पंक्ति कुम्भ को प्रणाम करके अपनी वंश-मुक्ता उसके चरणों में उड़ेलती है । कुम्भ के ही प्रभाव के कारण और भी बहुत से चमत्कार होते हैं। जैसे ही सेठ परिवार कुछ आगे बढ़ता है तो उस आतंकवादी दल की ललकार सुनाई देती है, जो इसका पीछा कर रहा था। आतंक का साक्षात् रूप उसे उस दल के रूप दिखाई देता है। सभी वनचरों में इस ललकार से हलचल मच जाती है।
और तभी गजों का समूह और नाग-नागिन सेठ परिवार की रक्षा के लिए सन्नद्ध हुए, कुम्भ के प्रभाव के कारण । आतंकवादी दल चारों ओर से घिर जाता है, अत: झाड़ियों में छुप जाता है। उसके बाद वे अवसर पाकर सात नींबू मन्त्रित करके शून्य आकाश में उछाल देते हैं जिसके प्रभाव से वन में प्रलयकारी वर्षा होने लगती है। पेड़ उखड़ जाते हैं, पशु-पक्षी भयभीत होकर मौन हो जाते हैं । इस बीच गुणग्राही हाथियों का समूह सेठ-परिवार तथा कुम्भ की रक्षा करता रहता है।
___ वर्षा थमती है । सेठ-परिवार नदी तट पर आ खड़ा होता है । कुम्भ उन्हें उफनती नदी पार करने का परामर्श देता है, क्योकि आतंकवाद उन पर कभी भी हमला कर सकता है। कुम्भ कहता है :
"जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह,/ये आँखें अब/आतंकवाद को देख नहीं सकतीं,
ये कान अब/आतंक का नाम सुन नहीं सकते।” (पृ. ४४१) और कुम्भ आह्वान करता है :
“ॐकार के उच्च उच्चारण के साथ/कूद जाओ धार में।" (पृ. ४४२) सेठ कुम्भ को अपनी कटि में बाँध कर धार में कूद पड़ा, परिवार ने भी उसका अनुसरण किया। जल की तीव्र धारा से संघर्ष करते हुए वे सब आगे बढ़े। जल के बीच छोटी-बड़ी मछलियाँ, मांसभक्षी महामगरमच्छ उभर-उभर कर उन्हें छूने लगे। उफनती नदी भी इन लोगों का यह दुस्साहस देखकर भड़क उठी। धरती के इन मित्रों को वह धिक्कारनेसी लगी:
"धरती के आराधक धूर्तो,/कहाँ जाओगे अब ? जाओ, धरती में जा छुप जाओ।
उससे भी "नीचे !/पातको, पाताल में जाओ!" (पृ. ४४७) ___ सेठ नदी की प्रतारणा से क्रुद्ध नहीं होता बल्कि उसे समझाता है कि उसका स्वयं का आधार भी तो धरती ही है। धरती न होती तो वह कहाँ बहती ? इस पर नदी और कुपित हुई, लाल-लाल हो गई। वह एक विशाल भँवर की ओर संकेत करती है, जिसमें सब जाकर डूब रहे हैं, तुम्हें भी उसी भँवर में डूबना होगा।
कुम्भ से अब रहा नहीं जाता । वह नदी को खरी-खरी सुनाता है और अन्त में कहता है :