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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 155 प्रतीक या जनक नहीं है। यह स्वयं कोई नवीनताबोधक आन्दोलन नहीं। यह स्थगित आस्था की विकृति है। सन्त्रासवादी विप्लवकारी शक्तियों के हाथ में सन्त्रासवाद से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं है । वे सहयोग एवं विश्वास के पथ पर चलकर समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। . आतंकवाद के दमनशील कुचक्र की धमकियों से ही समाज थरथरा रहा है। किसी भी प्रकार इसकी सत्ता स्थायित्व नहीं पा सकती । अत: कवि ने इस आन्दोलन- क्रूर आन्दोलन की परिणति दिखाते हुए कहा है : "जो/कुम्भकार का संसर्ग किया सो/सृजनशील जीवन का/आदिम सर्ग हुआ । ...जो/अहं का उत्सर्ग किया/सो सृजनशील जीवन का/द्वितीय सर्ग हुआ। ...उत्साह साहस के साथ/जो/सहन उपसर्ग किया, सो/सृजनशील जीवन का/तृतीय सर्ग हुआ। ...पराश्रित-अनुस्वार, यानी/बिन्दु-मात्र वर्ण-जीवन को तुमने ऊर्ध्वगामी ऊर्ध्वमुखी/जो/स्वाश्रित विसर्ग किया, सो/सृजनशील जीवन का/अन्तिम सर्ग हुआ। ...निसर्ग से ही/सृज्-धातु की भाँति भिन्न-भिन्न उपसर्ग पा/तुमने स्वयं को जो/निसर्ग किया,/सो/सृजनशील जीवन का वर्गातीत अपवर्ग हुआ।" (पृ. ४८२-४८३) कवि के भीतर के चित्त ने वर्तमान संकट से जन-जीवन-मानस को मुक्ति दिलाने की आकांक्षा से ही 'मूकमाटी' के कथ्य-सत्य का उद्घाटन-विश्वास व्यक्त किया है। पृष्ठ ४८५ समयसंसरही खसे भरपूर है,.. M 1. अपनाअनुभव तासला uln. UIRA
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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