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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 117 समान प्रफुल्ल, प्रसन्न काव्य बनकर लोक में रस की तरंगें बहा देती हैं। "संहार की बात मत करो,/संघर्ष करते जाओ! हार की बात मत करो,/उत्कर्ष करते जाओ।" (पृ. ४३२) यह पंक्ति इतिवृत्तात्मक है, उपदेशात्मक है, अत: कविता की श्रेणी में नहीं आती किन्तु काव्य-पंक्ति कहलाने का श्रेय इस तरह की अभिव्यक्तियों को तो है ही : "आग की नदी को भी पार करना है तुम्हें,/वह भी बिना नौका!/हाँ ! हाँ !! अपने ही बाहुओं से तैर कर,/तीर मिलता नहीं बिना तैरे।” (पृ. २६७ ) यहाँ उपदेश की छाया ज़रूर है, लेकिन यह सत्य है कि कविता या तो चरम मिथ्या (कल्पना) है या चरम यथार्थ की अभिव्यक्ति । इसलिए "तीर मिलता नहीं बिना तैरे" जैसी सपाट दिखने वाली काव्यपंक्ति भी फैज़ अहमद फैज़ की प्रसिद्ध काव्य-पंक्ति "तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है !" के सहजपन की टक्कर लेने की क्षमता रखती है। मूकमाटी की प्रासंगिकता किसी भी लेखन की प्रासंगिकता क्या है ? तुलसी, प्रेमचन्द, रवीन्द्रनाथ का लेखन देश और काल को अतिक्रमित करता है, किन्तु वह तत्काल यथार्थ और तत्कालीन समाज की संस्कृति, राजनीतिक परिदृश्य की उपज ही तो है । इसी सन्दर्भ में 'मूकमाटी' में व्यक्त कवि की प्रासंगिक दृष्टि या दर्शन पर विचार करना तर्कसंगत और समीचीन होगा। ___आज आतंकवाद की लपटें देश-विदेश में उठ रही हैं। यह सर्वग्रासी, मानव-मूल्य-हन्ता आतंकवाद सबके मनों में भय, अविश्वास और सन्देह तथा जीवन और जगत् के प्रति वितृष्णा का भाव उत्पन्न कर रहा है। 'मूकमाटी' में आज का यह कठोर यथार्थ और उसके उच्छेदन का स्वर हमें प्राप्त है : "कुम्भ का कहना हुआ :/नहीं"नहीं"नहीं...। लौटना नहीं !/अभी नहीं कभी भी नहीं" /क्योंकि अभी आतंकवाद गया नहीं,/उससे संघर्ष करना है अभी।" (पृ. ४४१) और इसलिए : "जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह,/ये आँखें अब/आतंकवाद को देख नहीं सकती, ये कान अब/आतंक का नाम सुन नहीं सकते, वह जीवन भी कृत-संकल्पित है कि/उसका रहे या इसका यहाँ अस्तित्व एक का रहेगा।” (पृ.४४१) आतंकवाद के खिलाफ कवि का यह जिजीविषापूर्ण, संकल्प-साहस-भरा वक्तव्य सिर्फ वक्तव्य नहीं है । जलती हुई धरती पर इस तरह एक अनासक्त, वीतराग सन्तकवि के ऐसे कविता-वाक्य निश्चय ही आतंकवाद, कायरतावाद और अलगाववाद के विरुद्ध युद्धघोष ही हैं-सार्थक और समय की पुकार के उत्तर स्वरूप। स्वर्ण कलश और मिट्टी के कुम्भ की तुलना दिलचस्प है और अन्ततः मिट्टी का कुम्भ ही जीवन के अधिक
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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