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112 :: मूकमाटी-मीमांसा
" 'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को 'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सब को, 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है 'भी' वस्तु के भीतरी-भाग को भी छूता है, 'ही' पश्चिमी-सभ्यता है/'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता। रावण था 'ही' का उपासक/राम के भीतर 'भी' बैठा था।
यही कारण कि/राम उपास्य हुए, हैं, रहेंगे आगे भी।” (पृ. १७३) इतना ही नहीं, इस पर बोध' को लोकतन्त्र की रीढ़ बताकर कवि ने प्राचीनता को नवीनता के परिपार्श्व में रखकर आधुनिकता की अपनी व्याख्या की है और लोकतन्त्र को तन्त्रों में वरेण्य बतलाया है :
"लोक में लोकतन्त्र का नीड/तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा।/'भी' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं,/सद्विचार सदाचार के बीज
'भी' में हैं, 'ही' में नहीं।" (पृ. १७३) तृतीय खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' है जिसमें पुण्य के धरातल पर उपजने वाली श्रेयस्कर उपलब्धि का वर्णन है । इस खण्ड में स्त्री के पर्याय का कवि-निरुक्त नवीनता की सम्मोहक व्याख्या में सचेष्ट दिखाई पड़ता है । नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता, माता का निरुक्त देखने लायक है। इसमें स्त्री' का विवेचन यों है :
" "स्' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है
सो 'स्त्री' कहलाती है।" (पृ. २०५) और 'सुता' शब्द की व्याख्या :
"ओ, सुख चाहनेवालो ! सुनो,/'सुता' शब्द स्वयं सुना रहा है : 'सु' यानी सुहावनी अच्छाइयाँ/और/'ता' प्रत्यय वह भाव-धर्म, सार के अर्थ में होता है/यानी,/सुख-सुविधाओं का स्रोत सो
'सुता' कहलाती है/यह कहती हैं श्रुत-सूक्तियाँ !" (पृ. २०५) साधना की सिद्धि पर मेघ से मुक्ताओं की वर्षा होती है। राजा के अनुचर उसे बोरियों में भरने का उपक्रम करते हैं किन्तु, आकाश में ध्वनि गूंजती है : 'अनर्थ पाप ।' अन्तत: कुम्भकार ही मुक्ताओं को राजा के पास जमा करा देता है। कथा के इस अंश पर प्रतीकात्मकता का सन्धान उचित ही है । पात्रता तो होनी ही चाहिए। जो अपात्र हैं, उन्हें सिद्धियों की प्राप्ति नहीं होती। मुक्ताओं की वर्षा का सम्बन्ध मन की उन्मुक्तता से भी है । बन्धनविहीन स्थिति के लिए ही तो तप का विधान है । अत: इस मुक्तता पर दूसरे का अधिकार कैसा ? फिर भी, मुक्त तो कामनारहित है, अत: मुक्ताओं की उज्ज्वलता उसे बाँध नहीं पाती । इसलिए वह उन मुक्ताओं पर अपना अधिकार भी नहीं समझता। इसी वज़न पर राजा के पास मुक्ताओं का सम्मुचय जमा करा दिया जाता है ।