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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 103 छवि पर से परदा उठा दिया है: "स्वागत मेरा हो/मनमोहक विलासितायें/मुझे मिलें अच्छी वस्तुएँऐसी तामसता भरी धारणा है तुम्हारी,/फिर भला बता दो हमें, आस्था कहाँ है समाजवाद में तुम्हारी? सबसे आगे मैं/समाज बाद में!" (पृ. ४६०-४६१) महाकवि विद्यासागर के अनुसार आचरण की शुचिता वाले परोपकारी लोगों का जीवन ही समाजवाद है : "समाज का अर्थ होता है समूह/और/समूह यानी सम-समीचीन ऊह-विचार है/जो सदाचार की नींव है। कुल मिला कर अर्थ यह हुआ कि/प्रचार-प्रसार से दूर प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है। समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से/समाजवादी नहीं बनोगे।” (पृ. ४६१) पूर्व ने स्वयं को हीन और पश्चिम को श्रेष्ठ मानकर पश्चिमी सभ्यता को सिर पर बिठा रखा है। वहाँ का घटिया और सड़ा-गला साहित्य हम परिणाम की चिन्ता किए बिना गले के नीचे उतारे जा रहे हैं। पश्चिम की चमकदमक ने हमारी दृष्टि पर परदा डाल दिया है । हम पूर्व और पश्चिम का अन्तर ही भूल गए हैं। 'मूकमाटी' के रचयिता ने 'ही' और 'भी' के द्वारा इस अन्तर को स्पष्ट किया है : “ 'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को/'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सब को, 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है/'भी' वस्तु के भीतरी-भाग को भी छूता है, 'ही' पश्चिमी-सभ्यता है/'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता। रावण था 'ही' का उपासक/राम के भीतर 'भी' बैठा था। यही कारण कि/राम उपास्य हुए, हैं, रहेगे आगे भी।” (पृ. १७३) ‘साम्यवाद' की असफलता के बाद एक लोकतन्त्र का ही रास्ता बच रहा है लेकिन उसे भी दूषित करने का प्रयास पूरे ज़ोर-शोर से जारी है। 'भी' की तलस्पर्शी दृष्टि लोकतन्त्र की रीढ़ है । आचार्यश्री इस वसुधा पर 'भी' को प्रतिष्ठित होते हुए देखना चाहते हैं : " 'भी' के आस-पास/बढ़ती-सी भीड़ लगती अवश्य, किन्तु भीड़ नहीं,/'भी' लोकतन्त्र की रीढ़ है। लोक में लोकतन्त्र का नीड़/तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा।/'भी' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं,/सद्विचार सदाचार के बीज 'भी' में हैं, 'ही' में नहीं।/प्रभु से प्रार्थना है, कि/'ही' से हीन हो जगत् यह अभी हो या कभी भी हो/'भी' से भेंट सभी की हो।" (पृ. १७३) कहा जा सकता है कि इस कृति का नायक भव्य और उदात्त गुणों से सम्पन्न नहीं है । माटी को नायक बनाने
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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