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xiv :: मूकमाटी-मीमांसा
आ. वि.- कवि को भी इसी तरह होना पड़ता है। यदि नहीं होता, युग के अनुरूप अपनी तस्वीर नहीं बनाता तो वह
कवि ही नहीं है। प्र. मा.- वाह ! क्या बात है। आ. वि.- तो इसका (कवि का) कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि फिर युग कैसा लेगा उसको । मैं अपनी तरफ से दे दूँ तो युग
स्वीकार नहीं करेगा। आपकी चाह के अनुरूप हम देंगे तो निश्चित रूप से वह स्वीकार्य हो जायगा। प्र. मा.- आपकी युग की जो कल्पना है क्या वह दिक् और काल से बँधी है? कौन-सा युग ? क्या आज का युग या
प्राचीन युग ? महाभारत का युग या राम का युग-क्या ? आ. वि.- युग हम हमेशा 'वर्तमान' को ही मानते हैं। प्र. मा.- वर्तमान' शब्द की क्या परिभाषा है ? इस क्षण से अगला क्षण क्या वर्तमान नहीं है ? आ. वि.- जिसमें भूत नहीं, भविष्य नहीं। प्र. मा. - हाँ। आ. वि.- जहाँ इच्छा नहीं, स्मरण नहीं, उसका नाम 'वर्तमान' है- 'वर्तते इति वर्तमानः'। वह ही वर्तमान
है हमारा । जो वर्तमान है, वही वर्धमान है हमारा। प्र. मा.- वाह ! वाह !! क्या बात है जो वर्तमान है, वही वर्धमान है। बुद्धि से उसका सम्बन्ध है। बहुत अच्छा । परन्तु
जो भूत है उसको हम भूल भी नहीं सकते। वह (भूत) उस (वर्तमान) में मिला हुआ है। टी. एस. इलियट ने लिखा है : “The past is involved in future and future and past in the present." - ये त्रिकाल जो है, एक प्रवहमान नदी है । हमारे चेतन, अचेतन, अर्धचेतन में ये सारे क्षण-क्षण जो हैं- तो क्षणवादी दर्शन के जो बौद्ध लोग हैं, वे मानते हैं कि क्षण ही प्रधान है। जबकि हमारे शंकराचार्य या उनसे भिन्न जो अन्य हैं उसको (सत् को) कूटस्थ, अचल और ध्रुव अर्थात् उसको एक निश्चित क्षण मानते हैं।
अत: काल के सम्बन्ध में आपकी क्या अवधारणा है ? आ. वि.- काल के माध्यम से हम करते हैं, काल में करते हैं किन्तु काल के द्वारा हम नहीं करते। प्र. मा.- मनुष्यत्व से काल कोई अलग चीज है ? आ. वि.- काल अलग चीज़ होते हुए भी एक 'स्व-काल' होता है और एक 'पर-काल' होता है । एक स्व-चतुष्टय
(स्व-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव) और एक पर-चतुष्टय (पर-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ) होता है ।
अपनी योग्यता ही 'स्व-काल' है और पर का सहयोग जो अपेक्षित है, वह पर-काल' है। प्र. मा.- इन दोनों का सम्बन्ध कैसे होता है ? आ. वि.- इन दोनों का सम्बन्ध उसी प्रकार होता है-जैसे करंट और तार । करंट स्व-काल है। करंट स्वयं प्रकाशमान्
है और जो वायर है उसके लिए पर-काल है । वायर के बिना वह (करंट) एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जा सकता । पर वह साधन (उपकरण) मात्र है । स्वयं वह प्रेषित नहीं करता मात्र मीडियम/माध्यम है।
यदि हम चाहते हैं तो जितनी गति के साथ करंट दौड़ेगा वह उसकी अपनी क्षमता होगी। प्र. मा.- तो काल करंट है और मनुष्य मीडियम ? आ. वि.- नहीं, काल केवल वायर है और करंट जो है वह स्वयं गतिमान् पदार्थ है । जीव चेतन है । वह स्वयं यात्रा
करेगा तो उसके लिए काल सहयोग करेगा । काल के द्वारा करंट (जीव) नहीं दौड़ रहा है। प्र. मा.- तो इसकी प्रत्यभिज्ञा कैसे होती है, ज्ञान कैसे होता है ?