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92 :: मूकमाटी-मीमांसा
देती है इसलिए अंगना कहलाती है (पृ. २०२-२०७)।
सा-रे-ग-म यानी सभी प्रकार के गम (दु:ख), प-ध (पद) यानी स्वभाव, 'नि' यानी नहीं हैं, इस अर्थ को समझना ही संगीत है (पृ.३०५) । इसी प्रकार मृदंग की ध्वनियों के भी नए अर्थ कल्पित किए गए हैं। 'धा "धिन् "धिन्धा ' का अर्थ है 'वेतन-भिन्ना चेतन-भिन्ना' । 'ता'"तिन तिन "ता' का आशय है ‘का तन "चिन्ता, का तन''चिन्ता' (पृ. ३०६) ।
श-स-ष की अत्यन्त रोचक व्याख्याएँ की गई हैं। 'श' यानी कषायों का शमन, 'स' यानी समता, 'ष' यानी पुण्य-पाप का पेट फाड़ना अर्थात् कर्मातीत होना (पृ. ३९७-३९८)।
कवि ने ९ की संख्याओं में से भी गूढ-गम्भीर तत्त्वों का उद्घाटन किया है जिसने काव्य को गणित और दर्शन का पादपीठ बना दिया है।
एक तो ये निरुक्तियाँ अयुक्तिसंगत होने से बुद्धि में नहीं बैठतीं, दूसरे इनमें काव्यकला का लेश भी न होने से ये काव्य की कोटि में नहीं आतीं। ये पहेलियों जैसा मज़ा अवश्य देती हैं। अस्वाभाविक भाषा : भाषा अधिकांशत: अस्वाभाविक है । कृत्रिमता के कारण कहीं-कहीं शब्दों के मुख्यार्थ को ग्रहण कर पाना भी असम्भव हो जाता है । अस्वाभाविकता का कारण है कवि का अनुप्रास-मोह । अनुप्रास-योजना के लिए कवि ने भाषा की प्रकृति से मेल न खानेवाले कृत्रिम शब्दों का प्रयोग किया है, शब्दों को तोड़-मरोड़कर या उनमें कुछ नया जोड़ कर ऐसा रूप दे दिया है कि वे पहचान में नहीं आते । फलस्वरूप उनके मुख्यार्थ का अन्वेषण करने में ही पाठक भटक जाता है, लक्ष्यार्थ, व्यंग्यार्थ की थाह पाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता । कुछ उदाहरणों से इसका अनुभव हो जाता है :
0 "यह कार्मिक-व्यथन है, माँ !" (पृ. १५) 0 “पीर-सागर की सावणता/चूलत: झरी है।” (पृ. ८१) 0 "घनी अलिगुण-हनी/शनि की खनी-सी..
भय-मद अघ की जनी/दुगुणी हो आई रात है। " (पृ. ९१) 0 "ऋतु की प्रकृति भी शीत-झीला है।” (पृ. ९३) ___ "जिन बालों में/अलि-गुण-हरिणी/कुटिलाई वह/भनक आई है ...जिन-चरणों में/सादर आली/चरणाई वह/पुलक आई है।" (पृ. १२८-१२९) "अपने से विपरीत पनों का पूर/पर को कदापि मत पकड़ो।” (पृ. १२४) “आमूल जीवन इसका/प्रशम-पूर्ण शम्य हो।” (पृ. १०८)
"हे सखे!/अदेसख भाव है यह।” (पृ. २२३) 0 “पाँव नता से मिलता है/पावनता से खिलता है।" (पृ. ११४) 0 “सहन-शीलता आ ठनी/हनन-शीलता सो हनी।" (पृ. २०९) 0 "तमो-रजो अवगुण-हनी/सतो-गुणी, श्रमगुण-धनी
वैर-विरोधी, वेद-बोधि ।” (पृ. २३९) ० "राजा की चिति की बुदबुदी को।” (पृ. २२०)
0 "रुद्रता विकृति है विकार/समिट-शीला होती है।" (पृ. १३५) हिन्दीभाषियों के लिए यह भाषा बिलकुल अपरिचित है । सावणता, अलिगुण-हनी, शीत-झीला, प्रशमपूर्ण
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