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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 59 कृति में कहीं-कहीं 'संहिता' (Juncture) का चमत्कार भी द्रष्टव्य है : (१) कम+बलवाले : कम्बल+वाले। (पृ.९२) (२) न + मन : नमन = न 'मन' हो, तब कहीं/नमन हो... । (पृ. ९७) (३) "मैं दो गला" (क) मैं दो + गला = मैं द्विभाषी हूँ। (ख) मैं दोगला = दोगला = छली, धूर्त, मायावी । (ग) मैं + दो + गला = 'मैं' यानी अहं को/दो गला- कर दो समाप्त ।(पृ. १७५) मैंने 'मूकमाटी' महाकाव्य के कथानक, भाव वैशिष्ट्य, अभिव्यक्तिकौशल के सम्बन्ध में कुछ संकेत भर किए हैं। इसके आध्यात्मिक प्रतिकार्थ अत्यन्त प्रभावोत्पादक हैं और इसी कारण मेरा विश्वास है कि यह कृति आज के अनास्थावान् व्यक्ति को आस्था का अभिन्न मन्त्र देने में समर्थ सिद्ध हो सकेगी, निराश व्यक्ति के जीवन में आशा का संचार कर सकेगी तथा उद्विग्न एवं खण्डित चेतना के लिए विराट्, अभिनव एवं शक्तिशाली आध्यात्मिक सत्य लोक के द्वार खोल सकेगी। आज विश्व में एक नई क्रान्ति हो रही है । भविष्यत् चेतना जन्म ले रही है। पुन: चिन्तन होना आरम्भ हो गया है । संकीर्णताएँ टूट रही हैं । दीवारें ढहाई जा रही हैं। विश्व नागरिकता की कल्पना को मूर्त रूप देने का प्रयास आरम्भ हो गया है। यह कृति समसामयिकता के आधुनिकता बोध की गाथा नहीं है, आतंकवाद एवं हिंसा से उपजी टटन. पीडा. सन्त्रास. उद्वेग की प्रश्नाकलता एवं भयाकलता से ग्रसित नहीं है अपितु यह भविष्यत चेतना का महाकाव्य है-अधिक विराट् आत्मशक्ति तथा अधिक व्यापक भूशक्ति की प्रेरणामयी भावात्मक भूमिका तक पहुँचने का जयपथ है और मैं इस दृष्टि से इस कृति का साहित्य जगत् में स्वागत करता हूँ तथा कृतिकार आचार्यश्री विद्यासागर के प्रति नमन एवं आभार व्यक्त करता हूँ। [णाणसायर' (शोध त्रैमासिकी), नई दिल्ली, अंक ३, मार्च, १९९०] पृष्ठ १८९ जब कभीधरापर--- - ... धरती के वैभव को ले गया है।
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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