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(२) गदहा :
(३) कृपाण : (४) सरिता : (५) संसार : (६) नारी : (७) महिला :
(८) अबला :
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(९) कुमारी :
मूकमाटी-मीमांसा :: 57 “ 'गद' का अर्थ है रोग/'हा' का अर्थ है हारक मैं सबके रोगों का हन्ता बन/"बस,
और कुछ वांछा नहीं/गद-हा गदहा !" (पृ. ४०) "हम हैं कृपाण/हम में कृपा न !" (पृ. ७३) "जो खिसकती-सरकती है/सरिता कहलाती है ।"(पृ. ११९) "जो सम्यक् सरकता है/वह संसार कहलाता है।" (पृ. १६१) " 'न अरि' नारी"/अथवा/ये आरी नहीं हैं/सोनारी।" (पृ. २०२) “ 'मह' यानी मंगलमय माहौल/महोत्सव जीवन में लाती है महिला कहलाती वह।" (पृ. २०२) "जो 'अव' यानी/ अवगम'-ज्ञानज्योति लाती है,/तिमिर-तामसता मिटाकर जीवन को जागृत करती है/अबला कहलाती है वह।" (पृ. २०३) "...जो/पुरुष-चित्त की वृत्ति को/विगत की दशाओं/और अनागत की आशाओं से/पूरी तरह हटाकर/ अब' यानी आगत - वर्तमान में लाती है/अबला कहलाती है वह ...! बला यानी समस्या संकट है/न बला "सो अबला ।" (पृ. २०३)
" 'कु' यानी पृथिवी/'मा' यानी लक्ष्मी/और/'री' यानी देनेवाली" इससे यह भाव निकलता है कि/यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना तब तक रहेगी/जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी।" (पृ. २०४)
“ 'स्' यानी सम-शील संयम/त्री'यानी तीन अर्थ हैं/धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है/सो'"स्त्री कहलाती है।" (पृ. २०५)
"सु' यानी सुहावनी अच्छाइयाँ/और/'ता' प्रत्यय वह भाव-धर्म, सार के अर्थ में होता है/यानी, सुख-सुविधाओं का स्रोत "सो-/'सुता' कहलाती है।" (पृ.२०५) "दो हित जिसमें निहित हों/वह 'दुहिता' कहलाती है अपना हित स्वयं ही कर लेती है,/पतित से पतित पति का जीवन भी हित सहित होता है, जिससे/वह दुहिता कहलाती है। उभय-कुल मंगल-वर्धिनी/उभय-लोक-सुख-सर्जिनी स्व-पर-हित सम्पादिका/कहीं रहकर किसी तरह भी हित का दोहन करती रहती/सो"दुहिता कहलाती है।" (पृ. २०५-२०६) "प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञान/प्रमेय यानी ज्ञेय/और प्रमातृ को ज्ञाता कहते हैं सन्त/जानने की शक्ति वह मातृ-तत्व के सिवा/अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होती यही कारण है, कि यहाँ/कोई पिता-पितामह, पुरुष नहीं है जो सब की आधार-शिला हो/सब की जननी/मात्र मातृतत्व है।" (पृ. २०६)
(१०) स्त्री :
(११) सुता :
(१२) दुहिता :
(१३) माता :