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56 :: मूकमाटी-मीमांसा
(२०) “परिधि की ओर देखने से/चेतन का पतन होता है और
परम-केन्द्र की ओर देखने से/चेतन का जतन होता है।" (पृ. १६२) (२१) “'ही' एकान्तवाद का समर्थक है/'भी' अनेकान्त, स्याद्वाद का प्रतीक ।" (पृ. १७२) (२२) “'ही' पश्चिमी सभ्यता है/'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता।" (पृ. १७२) (२३) “निर्बल-जनों को सताने से नहीं,/बल-संबल दे बचाने से ही
बलवानों का बल सार्थक होता है ।" (पृ.२७२) (२४) “रसनेन्द्रिय के वशीभूत हुआ व्यक्ति/कभी भी किसी भी वस्तु के
सही स्वाद से परिचित नहीं हो सकता।" (पृ. २८१) (२५) "ध्यान की बात करना/और/ध्यान से बात करना/इन दोनों में बहुत अन्तर है।"
(पृ. २८६) (२६) “दुःख आत्मा का स्वभाव धर्म नहीं हो सकता।" (पृ. ३०५) (२७) "अतिथि के बिना कभी/तिथियों में पूज्यता आ नहीं सकती।" (पृ. ३३५) (२८) "एक के प्रति राग करना ही/दूसरों के प्रति द्वेष सिद्ध करता है।" (पृ. ३६३) (२९) “प्रकृति से विपरीत चलना/साधना की रीत नहीं है।" (पृ. ३९१) (३०) "योग के काल में भोग का होना/रोग का कारण है, और
भोग के काल में रोग का होना/शोक का कारण है ।" (पृ. ४०७) (३१) "धन का मितव्यय करो,/अतिव्यय नहीं।" (पृ. ४१४) (३२) “पदवाले ही पदोपलब्धि हेतु/पर को पद-दलित करते हैं।" (पृ. ४३४) (३३) “प्रचार-प्रसार से दूर/प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है।"
(पृ. ४६१) अभिव्यक्ति के धरातल पर 'मूकमाटी' में कुछ शब्दों को नए अर्थों में प्रयुक्त किया गया है । इस दृष्टि से दो शैलियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं : (क) शब्दों के अक्षरों के अनुसार प्रति अक्षर की व्याख्या करते हुए शब्दों को नया अर्थ प्रदान किया गया है
अथवा उनकी अभिनव व्याख्या की गई है। (ख) शब्द के अक्षरों को अलग-अलग करके उन अक्षरों के विलोम क्रम से निर्मित शब्द को रखा गया है तथा
इन दो शब्दों में अर्थ-भिन्नता के माध्यम से शब्दों के अर्थों को नए आयामों के साथ प्रस्तुत किया गया है। ये प्रयोग 'उलटबाँसी' से भिन्न हैं। उलटबाँसी में तो लोक विपरीत ढंग का वर्णन रहता है, सांसारिक क्रिया-कलापों को उलटे ढंग से दिखाया जाता है किन्तु मूकमाटी' में शब्द के अक्षरों को उलट कर रखा
गया है तथा उससे निर्मित शब्द की पहले शब्द से तुलना की गई है। इन दोनों प्रकार के शब्द प्रयोगों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं :
(क) आक्षरिक विभाजन (१) कुम्भकार : "'कुं' यानी धरती/और/'भ' यानी भाग्य
यहाँ पर जो/भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है।” (पृ. २८)