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54:: मूकमाटी-मीमांसा
लगती हैं। तामसता का साम्राज्य चतुर्दिक् छा जाता है । धरती का दर्शन दुर्लभ हो जाता है । प्रचण्ड पवन के प्रवाह के कारण पर्वतों के पद लड़खड़ाने लगते हैं, पर्वतों की चोटियाँ पृथ्वी पर गिरने लगती हैं, मेघों का गुरु गर्जन होता है, बिजली कौंधती है, मूसलाधार वर्षा होती है। कुल मिलाकर जलप्रपात के समान, जल प्रलय के समान दृश्य उपस्थित हो जाता है । तदनन्तर प्रकृति में परिवर्तन होता है।
___ बादल दल छंट जाते हैं। सुदूर प्राची में लाली फूटती है । सेठ परिवार नदी तट पर जाकर खड़ा हो जाता है। वर्षा के कारण नदी आवेगवती है। उधर आतंकवाद से अभी भी संघर्ष करना है । कुम्भ कहता है कि नदी को पार करना है। इसके लिए वह उपाय सुझाता है कि रस्सी के एक छोर को उसके गले में बाँधकर पीछे-पीछे सब पंक्तिबद्ध हो अपनीअपनी कटि में कसकर रस्सी बाँध लें। कुम्भ के संकेतानुसार अपनी कटि में कुम्भ को बाँधकर सेठ नदी की तेज धार में कूद पड़ता है। परिवार के सदस्य सेठ का अनुसरण करते हैं। कुम्भ महायान का कार्य कर रहा है। नदी के भीतर छोटीबड़ी मछलियाँ, विषधर, कछुवे, महा मगरमच्छ तथा अन्य क्रूरवृत्ति वाले विविध जातीय जलीय जन्तु हैं। परिवार की शान्त मुद्रा देखकर जलचरों की वृत्ति में आमूल-चूल परिवर्तन होता है । यात्रा लगभग आधी हो चुकी है । यात्री मण्डल को लग रहा है कि मानो गन्तव्य ही अपनी ओर आ रहा है । मगर तभी बीच मझधार में आतंकवाद मार्गविरोधी बनकर परिवार के सम्मुख आ खड़ा होता । कहता है :
“अब पार का विकल्प त्याग दो/त्याग-पत्र दो जीवन को
पाताल का परिचय पाना है तुम्हें/पाखण्ड-पाप का यही पाक होता है।" (पृ. ४६०) परिवार के ऊपर अन्धाधुन्ध पत्थरों की वर्षा होने लगती है। घनी चोट लगने से सबके सिर फिर से जाते हैं। रक्त की धार बह उठती है । सेठजी के सिवा पूरा परिवार परवश हो पीड़ा का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में भी धैर्य- साहस के साथ सबसे आगे होकर सेठजी आतंक से संघर्ष करते हैं। आतंकवाद कुम्भ को फोड़ने का तथा कटि में कसी रस्सी को शस्त्रों से काटने का प्रयास करता है । मगर वह अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाता । आतंकवादी दल की दमनशील धमकियों से सेठ के सिवा परिवार के अन्य सदस्यों का दिल दहल उठता है । जीवन का अवसान देखकर वे आत्म समर्पण करने का विचार करने लगते हैं। नदी कहती है कि उतावली मत करो । असत्य के सामने सत्य पक्ष आत्म समर्पण करे -यह कैसी विडम्बना है ! क्या अब असत्य शासक बनेगा तथा सत्य शासित होगा ? इसी बीच वह नाव डूबती-सी नज़र आती है जिस पर आतंकवाद सवार है। आतंकवाद पश्चाताप से घुटता हुआ व्याकुल, शोकाकुल अवरुद्ध कण्ठ से क्षमायाचना करता है । सेठ आतंकवाद को प्रबुद्ध करता है :
"अपराधी नहीं बनो/अपरा 'धी' बनो,
'पराधी' नहीं/पराधीन नहीं/परन्तु/अपराधीन बनो।” (पृ. ४७७) आतंक दल का संकोच-संशय समाप्त हो जाता है और दल के सदस्य डूबती नाव से धार में कूद पड़ते हैं। सेठ के परिवार का प्रति सदस्य दल के प्रति सदस्य को आदर के साथ सहारा देता है। आतंकवाद की नाव पूरी तरह डूब जाती है। आतंकवाद का अन्त हो जाता है, अनन्तवाद का श्रीगणेश होता है । कुम्भ के मुख से मंगल कामनाएँ नि:सृत होती हैं कि यहाँ सब का जीवन सदैव मंगलमय हो । पूरा वातावरण धर्मानुराग से भर जाता है। नदी तट निकट आ जाता है। सब प्रसन्नचित्त नदी से बाहर निकल आते हैं। कटि में कसी रस्सी को सेठ परिवार के सदस्य खोल देते हैं। परिवार छने जल से भरे कुम्भ को लेकर आगे बढ़ता है कि उसी पुराने स्थान पर पहुँच जाता है जहाँ कुम्भकार माटी लेने आया करता है । परिवार सहित कुम्भ कुम्भकार का अभिवादन करता है । कुछ दूरी पर पादप के नीचे पाषाण-फलक पर