SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 :: मूकमाटी-मीमांसा ० "संयम की राह चलो/राही बनना ही तो/हीरा बनना है।" (पृ. ५६-५७) 0 "नीर का क्षीर बनना ही/वर्ण-लाभ है,/वरदान है ।" (पृ. ४९) दूसरा खण्ड शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं - सही दिशा में शब्द, बोध और शोध को प्रस्थापित करता है, जो क्रमश: पर्याय बन गए हैं - श्रद्धा, ज्ञान एवं चारित्र के । कवि के अनुसार : 0 "शब्दों के पौधों पर/सुगन्ध मकरन्द-भरे/बोध के फूल कभी महकते नहीं, ...बोध का फूल जब/ढलता-बदलता, जिसमें/वह पक्व फल ही तो शोध कहलाता है।/बोध में आकुलता पलती है शोध में निराकुलता फलती है।"(पृ. १०६-१०७) ___ “काल स्वयं चक्र नहीं है/संसार-चक्र का चालक होता है वह।" (पृ. १६१) यही चक्र कुलाल के पास सान बन जाता है : "कुलाल-चक्र यह, वह सान है/जिस पर जीवन चढ़कर अनुपम पहलुओं से निखर आता है, पावन जीवन की अब शान का कारण है।" (पृ. १६२) ___ 'ही' और 'भी' व्याकरण में निपात मात्र हैं जबकि तत्त्ववेत्ता दार्शनिक मनीषी आचार्य विद्यासागर की दृष्टि 0 “ 'ही' एकान्तवाद का समर्थक है 'भी' अनेकान्त, स्याद्वाद का प्रतीक।" (पृ. १७२) " 'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को 'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सब को, 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है 'भी' वस्तु के भीतरी भाग को भी छूता है, 'ही' पश्चिमी-सभ्यता है/'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्य-विधाता।" (पृ. १७३) तीसरे खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' के अन्तर्गत शुभ कार्यों के सम्पादन, लोकहित एवं आत्महित के लिए किए गए प्रयत्नों के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है । “अर्थ की आँखें/परमार्थ को देख नहीं सकतीं की चर्चा की जा चुकी है। कुछ अन्य सन्देश हैं : "जल को जड़त्व से मुक्त कर/मुक्ता-फल बनाना, पतन के गर्त से निकाल कर/उत्तुंग-उत्थान पर धरना, धृति-धारिणी धरा का ध्येय है।” (पृ. १९३) कुम्भ के द्वारा 'दर्शन' को व्याख्यायित किया गया है : "जल और ज्वलनशील अनल में/अन्तर शेष रहता ही नहीं साधक की अन्तर-दृष्टि में।/निरन्तर साधना की यात्रा
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy