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464 :: मूकमाटी-मीमांसा
स्वयं नहीं पढ़ सकते/तो/ इतना उपकार कीजिए जो खरीद नहीं सकते / किन्तु पढ़ सकते हैं उन्हें पढ़ने दे दीजिए।
गागर में / सागर है 'मूकमाटी' बँधी नहीं / छुपी नहीं / दबी नहीं उजागर है ‘मूकमाटी’।
आज नहीं तो कल / कल नहीं तो परसों या / बीत जाएँ बरसों / एक न एक दिन मेरी यह बात / करना पड़ेगी स्वीकार, कि / 'मूकमाटी' के / अध्ययन-मनन- चिन्तन और दिशादर्शन में/निहित है उद्धार ।
प्रदूषण से भरे / जहरीले वातावरण में चातक से / चीत्कार करते / विचरण करने वालो ! भटको मत / यह अमृत कलश उठा लो ।
इसे पढ़ो और पढ़ाओ / णमोकार मन्त्र / अथवा रामायण की तरह / समझो औ' समझाओ आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने जन- हित में / जो / सहज समर्पित कर दिया ।
अमूल्य चमत्कारी / साहित्य-दर्शनचिन्तन - अध्यात्म आदि से सराबोर 'मूकमाटी' में / जिस दिन गहरे उतर जाओगे, मेरा दावा है / उस दिन / कैसी भी भीड़ में अलग ही नज़र आओगे / कैसी भी भीड़ में अलग ही नज़र आओगे !