SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 294 :: मूकमाटी-मीमांसा "इस बात को मैं भी मानता हूँ कि/जीवनोपयोगी कुछ पदार्थ होते हैं, गृह-गृहणी घृत-घटादिक/उनका ग्रहण होता ही है/इसीलिए सन्तों ने पाणिग्रहण संस्कार को/धार्मिक संस्कृति का/संरक्षक एवं उन्नायक माना है। परन्तु खेद है कि/लोभी पापी मानव/पाणिग्रहण को भी प्राण-ग्रहण का रूप देते हैं।" (पृ. ३८६) अचानक सेठ रुग्ण हो गया। सारा शरीर अग्नि-सा दहक उठा । मच्छर-मत्कुण द्वारा अनेक उपदेश दिए गए सेठ को । कभी दक्षिणा के सम्बन्ध में तो कभी उदारता के सम्बन्ध में । कण और मन, प्रभात वेला, वैद्य समूह का आगमन तथा रोग का कारण जानकर उसे दूर करने का प्रयास किया गया। प्रकृति के विपरीत चलना ही रोग को आमन्त्रित करना है। योगी और भोगी की व्यवस्था, पुरुष और प्रकृति का सम्बन्ध निरूपित हुआ, यथा : 0 “पुरुष में जो कुछ भी/क्रियायें-प्रतिक्रियायें होती हैं,/चलन-स्फुरण-स्पन्दन, उनका सबका अभिव्यक्तिकरण,/पुरुष के जीवन का ज्ञापन प्रकृति पर ही आधारित है ।/प्रकृति यानी नारी/नाड़ी के विलय में पुरुष का जीवन ही समाप्त!" (पृ. ३९२-३९३) "पुरुष और प्रकृति/इन दोनों के खेल का नाम ही/संसार है, यह कहना मूढ़ता है, मोह की महिमा मात्र!/खेल खेलने वाला तो पुरुष है/और प्रकृति खिलौना मात्र !/स्वयं को खिलौना बनाना/कोई खेल नहीं है, विशेष खिलाड़ी की बात है यह !" (पृ. ३९४) 0 "प्रकृति और पुरुष का परिचय,/वेद मिला, भेद खुला 'प्रकृति का प्रेम पाये बिना/पुरुष का पुरुषार्थ फलता नहीं।" (पृ. ३९४-३९५) मनुष्य मात्र को चाहिए कि वह ऐसा प्रयास करे जिससे कोई रोग ही न हो । कारण को यदि विभक्त/समाप्त कर दिया जाए तो फिर कार्य होगा ही नहीं। यह सूक्ति नहीं सुनी आप सबने क्या...? "माटी, पानी और हवा/सौ रोगों की एक दवा।" (पृ. ३९९) सेठ ने प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से आरोग्य प्राप्त किया । ओंकार की उपासना करते हुए कवि द्वारा परावाक्, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी वाणी के उदाहरण दिए गए हैं। मृदा उपचार द्वारा सारे कष्टों का निवारण सम्भव है। आहार-विहार की उपयुक्तता नीरोग होने में सहायक एवं लाभप्रद है । इसके पश्चात् आज की भौतिकता की प्रगति पर तीखा व्यंग्य करते हुए कवि अपना मन्तव्य प्रकट करता है : "स्वर्ण के कुम्भ-कलश थालियाँ/रजत के लोटे-प्याले-प्यालियाँ, जलीय-दोषों के वारक/ताम्र के घट-घदू -हांडियाँ बड़ी-बड़ी परात भगोनियाँ "ऐसे/आदि-आदि मौलिक बर्तनों को बेच-बेच कर/जघन्य सदोष बर्तनों को/मोल ले रहे हैं धनी, धीमान् तक । आज बाजार में आदर के साथ/बात-बात पर इस्पात पर ही सब का दृष्टिपात है। जेल में भी/अपराधी के हाथ-पैरों में/इस्पात की ही
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy