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'मूकमाटी' में युग-स्पन्दन
राजेन्द्र पटोरिया 'मूकमाटी' आचार्य श्री विद्यासागर द्वारा रचित महाकाव्य है । भारतीय ज्ञानपीठ ने इसका प्रथम संस्करण १९८८ में प्रकाशित किया है । सुन्दर मुखपृष्ठ पर ऊपर बादलों की गहरी व हल्की नीली और श्वेत आभा है, नीचे गहरे और हल्के पीले रंग की माटी है । इस पृष्ठभूमि पर एक मंगल कलश रखा हुआ है, जो मूकमाटी की मूक साधना की परिणति है । सुन्दर मुखपृष्ठ के अतिरिक्त चारों खण्डों में सार्थक चित्र दिए हैं। प्रथम खण्ड का चित्र चक्राकार गतियों से बना है। दूसरे खण्ड में मंगल कलश के साथ अनुभूति की आँखें चित्रित हैं। तीसरे खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' में जल में जल से भिन्न कमल अंकित है। और चौथे खण्ड में अग्नि की लपटें और चाँदी-सी राख के ढेर का चित्रांकन
महाकाव्य की पृष्ठ संख्या ४८८ है। इसके साथ श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन का प्रस्तवन' है, जो कृति का परिचय भी देता है और कृति का यथार्थ स्तवन भी करता है । यह प्रस्तवन महाकाव्य के भाल पर बिन्दी की तरह सुशोभित है । कवि का कृति के विषय में आत्मकथ्य 'मानस तरंग' के रूप में है, जिसके अनुसार सृष्टिकर्ता ईश्वर की मान्यता के निराकरण जैसे मूलभूत सिद्धान्तों के उद्घाटन के साथ धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक कुरीतियों का निराकरण व वीतराग श्रमण संस्कृति की सुरक्षा कृति का पावन प्रयोजन है।
'मूकमाटी' आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । काव्य के आवरण में लिपटे हुए दर्शनपक्ष के अतिरिक्त इस काव्य का एक और पक्ष है-युग-सन्दर्भ का, युग-स्पन्दन का।
मेरी दृष्टि में 'मूकमाटी' ज़मीन से जुड़े लोगों की प्रतीक है, पद-दलितों की प्रतीक है। माटी युगों-युगों से परिवर्तनों को देख रही है, झेल रही है। सर्वसहा धरती की पुत्री माटी पददलित होकर भी सबके जीवन का आधार बनी हुई है । वह अन्न, औषधि, ईंधन, आश्रय, छाया क्या नहीं देती ? उसके बाद भी तुच्छ, अकिंचन समझी जाकर पददलित होती है । इस माटी के चरम भव्य रूप के दर्शन इस कृति में होते हैं।
___ मानसिक तनाव इस युग की देन है । इस समस्या का समाधान है-दृढ़ संकल्प से श्रम करना, विकल्पों से दूर रहना । कुम्भकार ऐसा ही कुशल शिल्पी है, जो बिखरी माटी को नाना रूप प्रदान करता है। वह अविकल्पी है, व्यर्थ के संकल्प-विकल्पों में झूलता नहीं है, इसीलिए तनाव का भार कभी उसके मस्तिष्क में आश्रय नहीं पाता । दृढ़ संकल्प से अपना कर्तव्य करता है, इसलिए करवंचना जैसे दोषों से दूर है । अपनी संस्कृति को विकृत होने से बचाए हुए है और इसीलिए वह तनावमुक्त है । अहंकार को त्याग कर कर्तव्यनिष्ठा से काम करता है । वस्तुत: कर्तव्यनिष्ठा का अभाव हमारे देश की भ्रष्टाचार से भी बड़ी समस्या है। विशेषत: सरकारी महकमों में अकर्मण्यता का साम्राज्य है। वेतन वाले वतन की ओर कब ध्यान दे पाते हैं ? इसीलिए कोई काम समय पर नहीं होता । जनसाधारण को इस विलम्ब से अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
माटी उन गरीबों की प्रतिनिधि है, जिनकी कुटिया बारिश में थोड़े से ही पानी से टपकती है, ज़मीन में गड्ढे पड़ जाते हैं। इनका घर ही नहीं, सारा जीवन ही आँसुओं से भीगा है :
"अमीरों की नहीं/गरीबों की बात है;/कोठी की नहीं
कुटिया की बात है/...इस जीवन-भर/रोना ही रोना हुआ है।" (पृ. ३२) दोहरा चरित्र या मायाचारिता मानवीय आचरण की एक और दुर्बलता है । बगुलाभक्तों ने इस दुनिया को खूब छला है :
"बाहरी लिखावट-सी/भीतरी लिखावट/माल मिल जाये,