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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 141 (२) निरुक्तों के माध्यम से अन्वेषित दर्शन को रचनात्मक स्वरूप प्रदान किया गया है । 'सरदार' शब्द को कवि ने 'सरदार' बनाया है । 'सरदार' का अर्थ हुआ (सर) बुद्धि (दार) वाला । " वह सर - दार का जीवन / असर - दार कहाँ रहा ? अब सरलता का आसार भी नहीं, / तन में, मन में, चेतन में ।” (पृ. ३८० ) (३) शब्दों का आलंकारिक प्रयोग काव्य को विशदता तथा रमणीयता प्रदान करता है : "माँ की आँखों में मत देखो / और / अपराधी नहीं बनो / अपरा 'धी' बनो, 'पराधी' नहीं / पराधीन नहीं/ परन्तु / अपराधीन बनो !” (पृ. ४७७) (४) शब्दों का विदग्धतापूर्ण विनियोग अर्थव्यंजना को विस्तृत करता है : "भुक्ति की ही नहीं, / मुक्ति की भी / चाह नहीं है इस घट में वाह-वाह की परवाह नहीं है / प्रशंसा के क्षण में । दाह के प्रवाह में अवगाह करूँ / परन्तु, / आह की तरंग भी कभी नहीं उठे / इस घट में संकट में।" (पृ. २८४) चिह्नित शब्दों में ध्वनि की तरंगायित गति पर अर्थों का भार है । (५) प्रतीकों और बिम्बों की सृष्टि में आचार्यजी की शब्द - साधना अप्रतिम है : " और देखो ना ! / माँ की उदारता- परोपकारिता / अपने वक्षस्थल पर युगों-युगों से चिर से / दुग्ध से भरे / दो कलश ले खड़ी है क्षुधा तृषा- पीड़ित / शिशुओं का पालन करती रहती है / और भयभीतों को, सुख से रीतों को/गुपचुप हृदय से चिपका लेती है पुचकारती हुई । " (पृ. ४७६) (६) आचार्यजी के द्वारा प्रयुक्त शब्द व्यंजना की अनेक सम्भावनाओं के द्वार खोलते हैं । (७) जीवन-सत्य और अनुभूत यथार्थ को सूत्रात्मक रूप में प्रस्तुत कर आचार्यजी ने अपनी शब्द - साधना की प्रवीणता प्रदर्शित की है। (८) आचार्यजी ने जीवनानुभव को वैयक्तिक से निर्वैयक्तिक, क्षुद्र काल-खण्ड से कालातीत और संकीर्ण स्थल से विस्तीर्ण सार्वदेशिकता प्रदान की है। इसमें इनकी शब्द - साधना ने इनकी भरपूर सहायता की है । (९) कविवर विद्यासागर की शब्द - साधना स्वेटर पर उगाए गए फूल की तरह है जिससे स्वेटर की उपादेयता में अभिवृद्धि हो जाती है । स्वेटर शारीरिक सुख के साथ मानसिक तृप्ति भी प्रदान करता है। " सलिल की अपेक्षा / अनल को बाँधना कठिन है / और अनल की अपेक्षा/अनिल को बाँधना और कठिन । / परन्तु, सनील को बाँधना तो / सम्भव ही नहीं है ।" (पृ. ४७२) आचार्यजी के वैचारिक कथ्य शब्दों की उपयुक्त विन्यस्ति के कारण ही मस्तिष्क की रेखा पार कर हृदय की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं ।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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