SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 27 विविध आयामों का चित्रण, शैली की गम्भीरता जैसे तत्त्वों का आकलन किया जा सकता है । पाश्चात्य विद्वानों ने भी महाकाव्य की परिभाषा को तराशा है और आधुनिक भारतीय विद्वानों ने भी उस पर काफी चिन्तन किया है। __ महाकाव्य की इन सारी परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में यदि हम 'मूकमाटी' की महाकाव्यात्मकता को परखना चाहें तो हम उसे एक अनुपम महाकाव्य की कोटि में सरलतापूर्वक बैठा सकते हैं। वैसे यह रूपक काव्य/महाकाव्य है इसलिए ऐतिहासिक वृत्तान्त का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ, माटी अपने आप में एक पवित्र नायिका है, मानवीकरण यदि कर लिया जाए। उसी तरह कुम्भकार को नायक माना जा सकता है। वे दोनों अथ से लेकर इति तक प्रभावक पात्र के रूप में बने रहते हैं। एक माटी जैसा पददलित पात्र किस प्रकार स्वयं के पुरुषार्थ या उपादान शक्ति से दूसरे का सहारा या निमित्त पाकर निम्नतम अवस्था से अध्यात्म की उच्चतम अवस्था तक पहुँच सकता है, इसका सांगोपांग चित्रण प्रस्तुत महाकाव्य का विषय है, जो पीछे महाकाव्य के चारों खण्डों में द्रष्टव्य है। महाकाव्य की परिभाषा हम जो भी बनाएँ पर इतना निश्चित है कि उसकी चरित्र कल्पना मानवतावादी दृष्टि से ओतप्रोत हो, अभिव्यंजना शैली गम्भीर हो और शिल्प उन्नत सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित हो । 'मूकमाटी' का उद्देश्य विशुद्ध प्रयत्नों पर स्वयं की शक्ति और दूसरे का यथावश्यक सहयोग पाकर आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त करना रहा है। माटी जिस तरह मंगल क स्थिति में कुम्भकार के सहयोग से पहुँच जाती है उसी तरह रत्नत्रय का परिपालन कर कोई भी व्यक्ति अपवर्ग की स्थिति में आ सकता है । यही इस महाकाव्य का कथ्य है। वस्तु-व्यापार वर्णन की दृष्टि से 'मूकमाटी' एक सफल महाकाव्य है । इसकी हर कथा की पृष्ठभूमि में गम्भीर दर्शन छिपा है । उदाहरणार्थ सरिता माँ पदार्थ की शाश्वत सत्ता को अभिव्यक्त करती है। माटी क्षमा और सहिष्णुता का प्रतीक है, गधा भारशीलता का, कंकर वर्ण-संकर का, बालटी अथाह ज्ञानसागर से कुछ बिन्दु निकालने का साधन रूप प्रतीक है। मछली मिथ्यादृष्टि से ग्रस्त व्यक्ति का, काँटा आपत्ति का, सिंह और श्वान जीवन-पद्धति का, कछुआ और खरगोश साधना विधि का और मच्छर-मत्कुण धनी-मानी के प्रतीक हैं। इन प्रतीकों के माध्यम से ही कथा सूत्र जुड़ सके हैं और जीवन के नए तथ्य उजागर हुए हैं। संवाद की दृष्टि से भी महाकाव्य उत्कृष्ट कोटि का है। समूचा महाकाव्य संवादों से भरा पड़ा है। सरिता और मिट्टी, काँटा और फूल, रसों का पारस्परिक कथन, मिट्टी और शिल्पी, प्रभाकर और बदली, पुष्प और पवन, शिल्पी और बबूल, कुम्भ और कुम्भकार, श्रीफल और पत्र, स्वर्ण और माटी कलश आदि सभी पात्रों के बीच संवाद और कथोपकथन आद्योपान्त चलते रहते हैं। ये सारे संवाद बड़े मार्मिक और प्रभावक हैं । कथासूत्र का ध्यान रखने पर उनमें अप्रासंगिकता नहीं झलकती । इतना ही नहीं, वे कथा-प्रवाह में सहयोगी बनकर भी सामने आते हैं। शब्द-सौन्दर्य आचार्यश्री शब्द-साधना के तो अनन्य कलाकार हैं। सारा काव्य अनुप्रास, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकारों से भरा पड़ा है । यदि इनको गिनाया जाए तो एक लम्बी लिस्ट हो जाएगी। शब्दों की तोड़-फोड़कर उनसे विविधार्थ निकालने में उन्हें अधिक आनन्द आता है । जैसे- अवसान-अब शान (पृ. १), गुमराह-गम आह (पृ. १२), कुम्भकार (पृ. २८), याद-दया (पृ. ३८), गदहा-गद-हा (पृ. ४०-४१), राही-हीरा (पृ. ५७), राख-खरा (पृ.५७), आदमी-आ+दमी (पृ. ६४), कृपाण-कृपा+न (पृ. ७३), कामना-काम+ना (पृ. ७७), शवशिव (पृ. ८४), शीतलता-शीत-लता (पृ. ८५), लाभ-भला (पृ. ८७), कम बल-कम्बल (पृ. ९२), शीतशीला-शीत-झीला (पृ. ९३), काय+रता-कायरता (पृ. ९४), नमन-न+मन, नम-न, (पृ. ९७), राजसत्ताराजसता (पृ. १०४), मानवत्ता-मानवता (पृ. ११४), पाँव नता-पावनता (पृ. ११४), धोखा दिया-धो, खा दिया
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy