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22 :: मूकमाटी-मीमांसा राष्ट्रीय चेतना के अन्त:स्वर
। एक बात और है, साहित्यकार सांसारिकता से कितना भी असम्पृक्त क्यों न हो, वह राष्ट्रीय चेतना से अपने को अछूता नहीं रख सकता। राष्ट्र के विकास में उसका प्रदेय साहित्यिक परिवेश में उपेक्षित नहीं माना जा सकता । कवियों पर राष्ट्र के विकास का उत्तरदायित्व रहा है, जो उन्होंने बखूबी निभाया है। मानवीय संवेदनाओं के स्पन्दनों की धड़कन से जो संगीत-स्वर उद्भूत हुए उन्होंने व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की कोशिकाओं को झंकृत किया और अखण्डता, एकनिष्ठ ता और सदाचरण की ओर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया । संकीर्णता के दायरे से हटकर सार्वजनीन और सर्वांगीण दृष्टि से मानवीय चेतना को परिष्कृत करने का उत्तरदायित्व साहित्यकार की मर्मज्ञता और सृजनशीलता का परिचायक है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की परिभाषा से आबद्ध उसकी विचारधारा विश्व-मानवता का पाठ पढ़ाती है, राष्ट्रीयता को प्रस्फुटित करती है, अहंवाद को विसर्जित करती है और विश्वशान्ति के स्वप्न को साकार करने का नया आयाम देती है । अन्तरराष्ट्रीय सद्भाव, परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व और सद्वृत्तियों के जागरण करने में उसका योगदान एक अहं भूमिका लिए रहता है । 'मूकमाटी' का यह अवदान एक ओर आध्यात्मिक संस्कार को जाग्रत करने के लिए सशक्त साधन है तो दूसरी ओर क्षमता और सामर्थ्य को सही दिशा-दान के लिए एक विनम्र आन्दोलन है। "जागो फिर एक बार" जैसे जागरण गीतों की एकलयता में 'मूकमाटी' का "मेरा संगी संगीत है, समरस नारंगीशीत है" (पृ. १४५) का युगबोध नया स्वर जोड़ देता है जो आत्म-परिष्कार की दृष्टि से और यथार्थबोध की ओर सजगता लाने की कामना से निश्चित ही महान् प्रदेय माना जा सकता है।
'मूकमाटी' के रचयिता की दृष्टि में पंजाब का मसला और उसका प्रचण्ड आतंकवाद एक चिन्ता का विषय रहा है। इसलिए वह कह उठता है पूरे स्वर से कि आतंकवाद के रहते धरती शान्ति का श्वास नहीं ले सकती। इसलिए उसे पूरी शक्ति से समाप्त करना होगा। अब विलम्ब करने की आवश्यकता नहीं। यह तो अस्तित्व का प्रश्न है । यहाँ अस्तित्व एक का ही रहेगा, तभी समृद्धि होगी :
"जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह,/ये आँखें अब/आतंकवाद को देख नहीं सकती, ये कान अब/आतंक का नाम सुन नहीं सकते, यह जीवन भी कृत-संकल्पित है कि/उसका रहे या इसका यहाँ अस्तित्व एक का रहेगा,/अब विलम्ब का स्वागत मत करो नदी को पार करना ही है/...भय-विस्मय-संकोच को
आश्रय मत दो अब!" (पृ. ४४१-४४२) आतंकवाद को समाप्त करने में कवि की दृष्टि सही समाजवाद की प्रस्थापना की ओर जाती है जिसमें धनतन्त्र की जगह जनतन्त्र की आराधना हो और निर्धनों में धन का समुचित वितरण हो (पृ. ४६१, ४६८)। उन्होंने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमन्त्री प्रकाश सिंह बादल के स्थान पर सुरजीत सिंह बरनाला को मुख्यमन्त्री बनाए जाने पर अपनी जो प्रक्रिया व्यक्त की है, वह द्रष्टव्य है :
"बादल दल छंट गये हैं/काजल-पल कट गये हैं
वरना, लाली क्यों फूटी है/सुदूर "प्राची में !" (पृ. ४४०) हम भारतीय स्वतन्त्र हैं और स्वतन्त्रताप्रिय हैं। हम न स्वयं परतन्त्र होना चाहते हैं और न दूसरों को परतन्त्र