SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 7 'मूकमाटी' में प्रकृति के वर्णन बड़े लुभावने हैं। प्रकृति को विभिन्न वस्तुओं का मानवीकरण कर उनमें एक रमणीय आकर्षण उत्पन्न कर दिया गया है । बदली को नारी रूप में प्रस्तुत करते हुए कवि कहता है : “गजगामिनी भ्रम-भामिनी/दुबली-पतली कटि वाली गगन की गली में अबला-सी/तीन बदली निकल पड़ी हैं। दधि-धवला साड़ी पहने/पहली वाली बदली वह ऊपर से.../साधनारत साध्वी-सी लगती है। रति-पति-प्रतिकूला-मतिवाली/पति-मति-अनुकूला गतिवाली इससे पिछली, बिचली बदली ने/पलाश की हँसी-सी साड़ी पहनी गुलाब की आभा फीकी पड़ती जिससे,/लाल पगतली वाली लाली-रची . पद्मिनी की शोभा सकुचाती है जिससे ।" (पृ. १९९-२००) यहाँ बदली में सुन्दरी नारी की शोभा देखी गई है। इसी प्रकार प्रभाव का प्रेरणाप्रद वर्णन इस प्रकार किया गया है : “अणु-अणु कण-कण ये/वन-उपवन और पवन भानु की आभा से धुल गये हैं। कलियाँ खुल खिल पड़ीं/पवन की हँसियों में, छवियाँ घुल-मिल गईं/गगन की गलियों में, नयी उमंग, नये रंग/अंग-अंग में नयी तरंग नयी ऊषा तो नयी ऊष्मा/नये उत्सव तो नयी भूषा।" (पृ. २६२-२६३) वास्तव में इस काव्य ग्रन्थ में प्रकृति के वर्णन बड़े मनोरम हैं, क्योंकि कवि के लिए प्रकृति का कण-कण चेतन है। उसे प्रकृति के रूप और व्यापारों में मानवीय रूप और व्यापार प्रतिभासित होते हैं। 'धूप' उसे भानु की अंगना लगती है। कुएँ से ऊपर जल के साथ आई हुई मछली के प्रसंग में उस धूप का वर्णन इस प्रकार है : "बालटी वह अबाधित/ऊपर आई- भूपर/कूप का बन्धन दूर हुआ मछली का;/सुनहरी है, सुख-झरी है/धूप का वन्दन! पूर हुआ वह सुख का/धूप की आभा से भावित हो रूप का नन्दन वन ।/धूल का समूह वह/सिन्दूर हुआ मुख का मछली की आँखें/अब दौड़ती हैं सीधी/उपाश्रम की ओर'! . दिनकर ने अपनी अंगना को/दिन-भर के लिए भेजा है उपाश्रम की सेवा में, और वह /आश्रम के अंग-अंग को आँगन को चूमती-सी"/सेवानिरत-धूप'!" (पृ. ७८-७९) इस प्रकार इस काव्य में जहाँ भी कोई अवसर मिला, कवि ने प्रकृति का मानवीकृत सुन्दर रूप-वर्णन प्रस्तुत किया है। 'मूकमाटी' काव्य पढ़ने पर, स्थान-स्थान पर कवि की वाणी का चमत्कार देखने को मिलता है । कहीं शब्द प्रयोग में कोमला और उपनागरिका वृत्तियों की छटा है, तो कहीं अनुप्रास, यमक और श्लेष के प्रयोग का चमत्कार है। भाषा पर, शब्दों पर कवि का विलक्षण अधिकार है । एक ताल और लय के समान ध्वनि वाले शब्द जैसे उसके इशारे पर नाचते हैं। श्लेष और यमक के भिन्न-पद प्रयोग बड़े मार्मिक हैं और शब्दों की नई व्युत्पत्तियाँ प्रस्तुत करते हैं। उपर्युक्त कथन उदाहरणों के द्वारा ही स्पष्ट होंगे, अत: कुछ के नमूने नीचे दिए जाते हैं : “अब तो"/अस्त्रों, शस्त्रों, वस्त्रों और कृपाणों पर भी
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy