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________________ 'मूकमाटी' महाकाव्य : विश्व साहित्य की अनुपम कड़ी एन. शान्तादेवी आचार्य विद्यासागर से लिखित 'मूकमाटी', जन साधारण से पठित यह 'मूकमाटी', काव्य प्रतिभा का एक चमत्कार है, साधारण व्यक्ति का एक उद्धारक है, धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म रस को पिलाने, मुक्त छन्द की मनोरम शैली में निबद्ध कर, काव्य साहित्य की एक अनुपम उपलब्धि, आचार्य विद्यासागर से लिखित 'मूकमाटी'। हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि में प्रकाशित रचनाएँ आपकी, 'डूबो मत, लगाओ डुबकी', 'तोता क्यों रोता ?', 'मूकमाटी' आदि अपने हित-मित-वचनामृत से जन-कल्याण में निरत आप, साधना की उच्चतर सीढ़ियों पर सतत आरोहण! माटी जैसी निरीह, पद दलित, व्यथित वस्तु को, महाकाव्य में महान् बनाकर, मुक्ति की वाणी दी है, कुम्भकार शिल्पी ने माटी की रचना को पहचाना, कूट-छानकर, वर्ण संकर हटाकर, मृदुता लाया, चाक पर चढ़ाकर, आवे में तपाकर, मंज़िल तक पहुँचाया, मुक्ति यात्रा का रूपक है यह महाकाव्य 'मूकमाटी' ! उनका उद्देश्य रहा : 'यथाकार बनना, व्यथाकार न बनने', 'तथाकार बनना, कथाकार न बनने, आतंकवाद का अन्त और अनन्तवाद का श्रीगणेश ! चार खण्डों में विभक्त यह 'मूकमाटी', 'संकर नहीं : वर्ण-लाभ' प्रथम खण्ड में, माटी व शिल्पी के मध्य मनोरम संवाद, अव्यक्त भाव, शब्दों में व्यंजित हो इतिहास बनाती है ! बोझ ढोए गदहे की पीड़ा से माटी करुणार्द्र हो, पश्चाताप की आग में जलकर याद करती है। 'याद' से 'दया' का विलोम रूप में अर्थ निकलता है, गद-रोग, हा-हारक बन, जीवन का निर्वाह नहीं, निर्माण में सहायक बनता है। शिल्पी, माटी का चालन कर संशोधन करता है, माँ माटी से पृथक् हो, कंकर प्रश्न करता है, सोदाहरण समझाते हैं-गाय क्षीर तथा आक क्षीर से माँ माटी देशना देती कंकर को- 'राही' बने 'हीरा'! रस्सी बालट्री लेकर, कूप से जल लाने निकला, पानी मछली सहित बाहर आते देखा। माँ माटी से ज्ञान माँगती मछली, मासूम बनने उत्तर मिला, वापस कुएँ में पहुँचकर 'दया-विसुद्धो धम्मो' प्रस्फुटित हुआ।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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