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________________ 462 :: मूकमाटी-मीमांसा सही चित्रण किया है। अग्नि की परीक्षा को अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाओं से वर्णित किया है । इस महाकाव्य में श्रद्धालु नगर सेठ के सेवक के हाथों मंगल कलश मँगवा कर तथा उसमें जल भरकर, पधारे गुरु के पाद-प्रक्षालन के उपरान्त आहार-दान कर तृषा-तृप्ति कराने 4 भावना से कवि ने मन:स्थिति को स्पष्ट करते हुए सन्त-साधुजनों के प्रति आहार-दान की प्रक्रिया को मार्मिक रूप से अभिव्यक्त किया है। आहार देने एवं न दे सकने पर भक्तों में हर्ष-विषाद की भावना, साधु के द्वारा धर्मोपदेश-सार आदि विस्तृत भावनाओं को भी उजागर/स्पष्ट किया है। महाकाव्य में, मिट्टी के घड़े को आदर क्यों दिया गया, इस अपमान का बदला लेने के लिए एक आतंकवादी दल को आहूत किया जाता है जो सेठ परिवार में त्राहि-त्राहि मचा देता है। क्षमा-भावना से आतंकवादी दल का हृदय परिवर्तन किया जाता है । यह महाकाव्य वर्तमान परिवेश में सामाजिक दायित्व का बोध कराता है । आत्मा का उद्धार व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से कर सकता है, यही दिशाबोध इसमें प्राप्त होता है । महाकाव्य 'मूकमाटी' की गरिमा काव्य में आध्यात्मिक आयामों, दर्शन और चिन्तन के प्रेरणादायक प्रसंगों से है। इसमें इन्होंने व्यक्ति के जीवन पर सटीक मुहावरे, चमत्कार, मन्त्रविद्या की आधारभित्ति, आयुर्वेद के प्रयोग, अंकों के चमत्कार आदि के प्रयोग से आधुनिक जीवन में उपजी नई विचारधाराएँ स्पष्ट की हैं। इसके अध्ययन-मनन का अद्भुत सुख और सन्तोष इसके गम्भीर अध्ययन और चिन्तन-मनन के द्वारा प्राप्त होता है । महाकाव्य में आचार्य विद्यासागर द्वारा चिन्तन के विभिन्न आयाम प्रस्तुत किए हैं। यह किसी धर्म विशेष से सम्बन्धित नहीं होने से सर्वसाधारण व्यक्तियों के लिए उपयोगी काव्य है। इसके अध्ययन से मानव/व्यक्ति को शिक्षा मिलती है और इसके चिन्तन से भावना और आचरण में निश्चित रूप से परिवर्तन होगा। इस महाकाव्य का सृजन हिन्दी साहित्य जगत् में अनुपम उपलब्धि है। मैं 'मूकमाटी' महाकाव्य के अध्ययन तथा समीक्षा करने के उपरान्त इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आचार्य विद्यासागर के प्रवचन सुनने और उस पर चिन्तन कर सत्य और अहिंसा रूप आचरण करने के लिए भी लोग उनके उपदेश सुनने आते हैं। लेकिन शहरी क्षेत्रों में निवास करने वाले युवा वर्ग में, जिन्हें बतौर फैशन कहा जाए तो कथन असत्य न होगा - वे अण्डे, माँस और मदिरा का सेवन घरों से बाहर रहकर करते हैं । अत: उनके आचरण को सुधारने के लिए आचार्य श्री विद्यासागरजी अपने प्रवचन तथा लेखनी में अवश्य ही ऐसे प्रसंग उपस्थित करें जिससे उन्हें सही-सही दिशाबोध प्राप्त हो सके। यह मेरा कथन आलोचना का नहीं अपितु जीवन में जो घटनाएं हो रही हैं, वह न हों तथा आतंकवादी के रूप में जो व्यक्ति अण्डे, माँस, मदिरा आदि का सेवन कर अपने घर-परिवार में त्राहि मचा देता है और परिणामत: दूषित प्रभाव से परिवार का विखण्डन भी हो जाता है । अतएव सन्त वाणी में इन बातों/चीज़ों को अवश्य ही स्पष्ट किया जाए, तभी भावी पीढ़ी से हम अपेक्षा कर सकते हैं कि वे समाज को सुधारें। लोगों को पाप से दूर रखने के लिए, उनकी भावनाओं को परिवर्तित करने के लिए गम्भीरता के साथ चिन्तन करना होगा। 'मूकमाटी' काव्य रचना को पढ़ा और इससे मैं प्रभावित भी हुआ हूँ। मैंने वर्तमान में जो देखा या जो स्थिति चल रही है, उसमें परिवर्तन लाने की दृष्टि से सुझाव रखे हैं। इन सुझाव पर विचार करें और मेरे विचारों का समावेश करते हुए मेरी भावनाओं को सभी लोगों तक पहुँचाएँ।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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