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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 439 यह काव्य प्रमुख रूप से श्रद्धा से पढ़ा जाने वाला एक आध्यात्मिक काव्य है, उपन्यास सम्राट् प्रेमचन्द के अनुसार कवि या लेखक समाज का पथ प्रदर्शक होता है, यह कर्तव्य 'मूक माटी' के रचयिता ने पूर्ण रूप से निभाया है। वस्तुत: कवि का ध्यान विचारों के प्रतिपादन पर अधिक था, इसीलिए कदाचित् कुछ प्रसंग आग्रह-पूर्वक जोड़े हुएसे लगते हैं तथा कहीं-कहीं भावों की पुनरावृत्ति हो गई है। इसी कारण शायद काव्य का आकार भी विशद हो गया है। ____ काव्य का शीर्षक बड़ा ही संक्षिप्त, सटीक एवं सुन्दर है। काव्य कमल-पत्र पर पड़े एक छोटे से हिमकण के समान ही पवित्र, ज्योतिष्मान् एवं पारदर्शी है, जो काव्य के कथानक को स्पष्ट इंगित कर देता है । अन्त में कहना चाहूँगी कि सुन्दर शीर्षक युक्त, विभिन्न सर्गों में विभक्त 'मूकमाटी' बहुत ही सुन्दर एवं प्रभावशाली बन पड़ा है और साहित्याकाश में एक देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति सदा चमकता रहेगा। 'मूकमाटी' : प्रयोगवादी काव्य परम्परा की नयी कड़ी ___ डॉ. महेन्द्र कुमार साहू आचार्य श्री विद्यासागर कृत 'मूकमाटी' (महाकाव्य) को हम आधुनिक युग के प्रयोगवादी काव्य की श्रेणी में रख सकते हैं, क्योंकि यह महाकाव्य सम्बन्धित शास्त्रीय सिद्धान्तों से पूर्णरूपेण अलग है। हम इसे बाबू जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित छायावादी युग के प्रतिनिधि महाकाव्य 'कामायनी' के समतुल्य नहीं मान सकते हैं। ___ हिन्दी साहित्य में छायावाद के पश्चात्-प्रयोगवादी, नयी कविता का दौर आया जिसमें परम्परा एवं काव्यशास्त्रीय नियमों से हटकर अनेक प्रयोग किए गए, लेकिन वे 'कामायनी' की तरह अपनी पहचान नहीं बना पाए। आचार्य श्री विद्यासागर द्वारा रचित 'मूकमाटी' (महाकाव्य) इसी प्रयोगवादी काव्य परम्परा की एक नयी कड़ी है। 'मूकमाटी' कथावस्तु, नायक तत्त्व, काव्य शिल्प एवं औदात्य की दृष्टि से पूर्णरूपेण महाकाव्य की शास्त्रीय परम्परा से भिन्न है । इस महाकाव्य में धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म, काव्य औदात्त्य के रूप में अधिक गहन रूप से उभर कर हमारे सामने आए हैं, जो कि रचयिता के सहज मानवीय गुणधर्मों के परिचायक हैं। प्रस्तुत महाकाव्य 'मूकमाटी' में महाकाव्य के अनुरूप औदात्य कथावस्तु के अन्तर्गत 'माटी' जैसी निरीह, पद-दलित, व्यथित वस्तु को महाकाव्य की गरिमा प्रदान कर रचनाकार ने अपने गहन धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म का परिचय दिया है। माटी' का प्रतीकात्मक मानवीय दर्शन इस महाकाव्य का आधार स्तम्भ है। इस महाकाव्य में धर्म-दर्शन एवं अध्यात्म पर जितना बल दिया गया है, उतना महाकाव्य के अनुरूप उसके काव्य शिल्प और सौष्ठव पर नहीं । वस्तुतः यह कृति अधिक परिमाण में अध्यात्म है अर्थात् 'मूकमाटी' को हम 'मानवीय जीवन दर्शन' का प्रतीकात्मक महाकाव्य कह सकते हैं।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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