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________________ 'मूकमाटी' महाकाव्य : आधुनिक भारतीय साहित्य की अपूर्व उपलब्धि डॉ. पवन कुमार जैन यह कृति चार खण्डों एवं लगभग पाँच सौ पृष्ठों में वर्णित है जो परिभाषा की दृष्टि से महाकाव्य की सीमाओं के अन्तर्गत है। ‘मूकमाटी' में धर्म, दर्शन तथा अध्यात्म का सार मुक्त छन्द के माध्यम से काव्य शैली में निबद्ध हुआ है। आचार्य विद्यासागर ने माटी जैसी निरीह, पददलित, आक्रान्त और व्यथित वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाकर उसकी मूक वेदना तथा मुक्ति की आकांक्षा को वाणी दी है। 'मूकमाटी' के प्रारम्भ में ही महाकाव्यात्मक प्राकृतिक परिदृश्य देखने को मिलता है : " सीमातीत शून्य में / नीलिमा बिछाई, ... और इधर नीचे / निरी नीरवता छाई ।” (पृ. १) इसी प्रसंग में कुमुदिनी, कमलिनी, चाँद-तारे, सुवासित वायु, सरिता तट आदि प्राकृतिक परिदृश्य महाकाव्य जैसी पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हैं। महाकाव्य की अपेक्षाओं के अनुरूप प्राकृतिक परिवेश के अतिरिक्त इस कृति में सृजन के अन्य पक्ष भी मौजूद हैं। इस प्रश्न पर विचार करते समय प्रश्न उठता है कि 'मूकमाटी' का नायक कौन है और नायिका कौन है ? इस कृति की नायिका माटी ही है, यह कृति के नामकरण से ही द्योतित होता है। कृति का सम्यक् वस्तु विधान माटी के ही आसपास घूमता है। माटी जैसी तुच्छ वस्तु को मंगल मूर्ति घट का स्वरूप प्रदान करने वाले शिल्पी कुम्भकार को इस कृति का नायक माना जा सकता है। यहाँ नायिका और नायक के बीच में आध्यात्मिक प्रकार का रोमांस रहा है। माटी जैसी पद दलित, तुच्छ, निरीह, व्यथित वस्तु को कितनी प्रतीक्षा रही है उस कुम्भकार की, जो उसका उद्धार करेगा । 'मूकमाटी' में काव्य की दृष्टि से शब्दालंकार और अर्थालंकारों की छटा नवीन सन्दर्भों में आकर्षक एवं मनोहारिणी है । आचार्यश्री की शब्द योजना अनूठी है, जिसका प्रचलित अर्थ में उपयोग करके वे उसकी संगठना को नई-नई धार देने के लिए व्याकरण की कसौटी पर निरन्तर परखते हैं और उनमें से नए-नए आवरणों का परदाफाश करते हैं । प्रयुक्त शब्दावली में आन्तरिक रमणीयता है । उनमें अर्थ के अनूठे और अछूते आयाम भी प्रतिबिम्बित होते हैं । आचार्यजी का शब्द योजना में अर्थान्वेषिणी दृष्टि का चमत्कार विधान अद्भुत है जो महाकाव्य की दृष्टि से सार्थक है। उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'मूकमाटी' में महाकाव्योचित अनेक विशेषताएँ मिलती हैं। इसकी कथावस्तु समाज की सम्पूर्ण ज्वलन्त समस्याओं और चेतना को लेकर आगे बढ़ती है। इसमें महाकाव्योचित जीवन दर्शन, उद्देश्य एवं उपदेश समाविष्ट हैं । अर्थालंकारों की छटा, कथा की रोचकता, निर्जीव पात्रों के सजीव चुटीले संवाद, शब्दों के अन्दर समाहित आध्यात्मिक अर्थ योजना बरबस ही साहित्यकारों को आकर्षित करती है, जो महाकाव्य 1 लिए आवश्यक एवं अपेक्षित भी है। इस काव्य में जहाँ स्वयं को और मानव के भविष्य को समझने की नई दृष्टि प्राप्त होती है, वहीं चिन्तन-मनन की नई सूझ भी । इस प्रकार इन विशेषताओं के आधार पर इसे महाकाव्य कहा जा सकता है । 'मूकमाटी' महाकाव्य आचार्य विद्यासागर की आधुनिक भारतीय साहित्य के लिए एक अपूर्व उपलब्धि है । यह रचनाकार के काव्य विकास का एक चरम बिन्दु है । वस्तु और शिल्प दोनों दृष्टियों से इस कृति की रचना एक विशेष
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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