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मूकमाटी-मीमांसा :: 419 “ 'सं' यानी समीचीन/'सार' यानी सरकना..
जो सम्यक् सरकता है/वह 'संसार' कहलाता है।" (पृ. १६१) साहित्य शब्द को नए अर्थबोध के माध्यम से अभिव्यक्ति दी है :
“हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है
और/सहित का भाव ही/साहित्य बाना है।” (पृ. १११) इस 'साहित्य' में नव रसों की स्थापना की जाती है, जो सीधे व्यक्ति के हृदय पक्ष को स्पन्दित करते हैं। 'करुणा का रुदन' कवि हृदय की भावुकता को तो स्पष्ट करता ही है किन्तु साथ ही उसकी विस्तृत मीमांसा भी कवि करता है :
“करुणा की दो स्थितियां होती हैं-/एक विषय लोलुपिनी
दूसरी विषय-लोपिनी, दिशा-बोधिनी।" (पृ. १५५) ___ जल और बर्फ के उदाहरण से कवि ने जो रस परिपाक स्पष्ट किया है, वह अत्यन्त दुर्लभ है :
"करुणा तरल है, बहती है/पर से प्रभावित होती झट-सी। शान्त-रस किसी बहाव में/बहता नहीं कभी/जमाना पलटने पर भी
जमा रहता है अपने स्थान पर ।" (पृ. १५६-१५७) कला ही जीवन का सत्य है और सुख की राशि है । कवि कहता है :
“स्वर संगीत का प्राण है/संगीत सुख की रीढ़ है
और/सुख पाना ही सब का ध्येय ।” (पृ. १४३) शिल्पी के द्वारा कुम्भ पर कुत्ते और सिंह की नक्काशी भी प्रतीक रूप में है। कुत्ता कुत्ते को देख कर गुर्राता है, किन्तु सिंह सिंह को देख कर साथ रहने की कामना करता है। हमारी संस्कृति सिंह की संस्कृति है। कुत्ते को यदि पत्थर मारो तो वह पत्थर को काटता है, किन्तु सिंह को पत्थर मारो तो वह कारण तलाशता है । कवि ने पाश्चात्य सभ्यता के प्रेमीजनों को श्वान संस्कृति का उपासक मान, हीन दृष्टि से देखा है। आज जो परिवार विघटित हो रहे हैं, स्त्री-पुरुष के अटूट सम्बन्धों में दरार आ रही है, उसका एकमात्र कारण कवि की दृष्टि में व्यक्ति का श्वान-संस्कृति पर अनुरक्त होना ही है।
इस सुन्दर सृष्टि में सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, सागर, जल, वायु आदि का अपना अलग महत्त्व है । बाँस के साथ मुक्ता निर्माण की सुन्दर कल्पना है । बाँस की बंसी और कण्ठ में मुक्तामाल ने कवि को नवीन दृष्टि दी है। साथ ही 'नारी' शब्द को नई अभिव्यक्ति दी है:
"कुपथ-सुपथ की परख करने में/प्रतिष्ठा पाई है स्त्री-समाज ने । इनकी आँखें हैं करुणा की कारिका/शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें मिलन-सारी मित्रता/मुफ्त मिलती रहती इनसे । यही कारण है कि इनका सार्थक नाम है 'नारी'/यानी-/'न अरि' नारी
अथवा/ये आरी नहीं हैं/सो''नारी'..!" (पृ.२०२) इसी प्रकार महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता, मातृ आदि सभी नारी पर्यायों की सुन्दर व्याख्या की