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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 415 “सत्ता शाश्वत होती है, बेटा !/प्रति-सत्ता में होती हैं अनगिन सम्भावनायें/उत्थान-पतन की।" (पृ. ७) उदाहरण दिया है कवि ने बरगद का बीज खसखस के दाने-सा सूक्ष्म होता है, किन्तु उचित समय में खाद, वायु एवं जल के संसर्ग से विशाल वटवृक्ष बन खड़ा हो, अनेक खग-कुलों को तथा श्रान्त/पथिक को आश्रय देता है और अनायास वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन जाता है। ___संगति के प्रभाव का परिणाम कवि की दृष्टि में प्रत्येक प्राणी पर पड़ता है । यहाँ कवि पर कबीर की विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। वर्षा के जल की एक बूंद सागर में गिरती है तो लवणयुक्त हो जाती है, सीपी में गिरती है तो श्वेताभ मुक्ता बन जाती है, विषधर के मुख में विष तथा चातक के मुख में सुधा-सम हो जाती है और कदली पल्लव पर गिरने पर कर्पूर बन जाती है । कबीर भी यही कहते हैं : "मूरिष संग न कीजिए, लोहा जाति न तिराई। कदली सीप भुजंग मुख, एक द तिहुँ भाई ॥" आचार्यश्री ने जिस पुरुषार्थ की चर्चा की है, वह हमें 'गीता' (२/४७) में कृष्ण के द्वारा और दिनकर रचित 'कुरुक्षेत्र' में भीष्मपितामह द्वारा दिए गए उपदेशों में भी मिलती है। अपने ही बन्धु-बान्धवों को युद्धरत देख वैराग्यकामना करने वाले अर्जुन और मृतक बन्धु-बान्धवों को देख हताश युधिष्ठिर को पुरुषार्थ का महत्त्व बताते हुए यही तो कहा गया था: __ "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।" आचार्यश्री के शब्दों में: "किसी कार्य को सम्पन्न करते समय अनुकूलता की प्रतीक्षा करना/सही पुरुषार्थ नहीं है ।” (पृ. १३) इन पंक्तियों ने कवि को हठयोग के माध्यम से ब्रह्म ज्ञानमार्गी भक्त कवि कबीर, प्रेममार्गी कवि जायसी, सूर, तुलसी आदि भक्त कवियों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। बैर, द्वेष का त्याग मनुष्य को निश्चय ही श्रेष्ठ व्यक्ति बना देता है। . माटी को नया रूप, नया आकार देने का काम करेगा शिल्पी, जिसकी उसे प्रतीक्षा है। भक्त को भगवान् तब तक नहीं मिलते जब तक पूर्ण समर्पण का भाव भक्त में नहीं होता । जब द्रौपदी ने दोनों हाथ उठा अपने 'स्व' को कण्ठ से प्रभ को पकारा तो प्रभ दौडे आए। माटी को नए जीवन का आरम्भ करना है. लक्ष्य प्राप्ति करनी है। प्रतीक्षा के लम्बे क्षणों की आतुरता में प्रकृति का कण-कण, ओस कण, निर्झर का कल-कल निनाद, अन्धकार आदि उसे आज एक नए उल्लास का भान कराते हुए अपनी ओर खींच रहे हैं, और तभी प्रभात की प्रथम किरण जाग उठी, माटी की दृष्टि अपने शिल्पी पर पड़ी। आज माटी अपना 'स्व' उसी शिल्पी के हाथों सौंपने को उत्सुक है । शिल्पी कुदाली से माटी के माथे पर आघात कर रहा है किन्तु माटी समर्पण की आशा में प्रसन्न है, क्योंकि वह अब समझ गई है : "बाहरी क्रिया से/भीतरी जिया से/सही-सही साक्षात्कार किया नहीं जा सकता।/और/गलत निर्णय दे जिया नहीं जा सकता।” (पृ. ३०) समर्पित
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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