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________________ 'मूकमाटी' की मुखर चेतना केशव रावत निमित्त-नैमित्तिक संयोग से सृष्टि की रचना में आश्वस्त जैन दर्शन, वह चिन्तन धारा है जो ईश्वर के अस्तित्व में आस्था रखती है, किन्तु वैदिक दर्शन की मान्यता के अनुसार वह ईश्वर को जगत् - गति का कर्ता और संचालक नहीं मानती है । ईश्वर सृष्टि का जनक, पालक और संहारक है - इस वैदिक मान्यता से जैन दर्शन सहमत नहीं है । इससे उसे नास्तिक दर्शन कहा जाता है । आरम्भ में ज्ञानदाता के कर-कमलों में अपनी इस कृति को सन्त ने परोक्ष रूप से समर्पण किया है। ___ आगे आत्मकथ्य के तौर पर 'मानस-तरंग' नाम के छोटा-से किन्तु गूढ़ और सारगर्भित वक्तव्य के बाद 'मूकमाटी' का कथानक आरम्भ होता है। 'मूकमाटी' : महाकाव्य की कसौटी पर ___महाकाव्य सर्गबद्ध हो और कम से कम आठ सर्गों वाला हो । सर्ग न तो छोटे हों और न अत्यन्त बड़े । प्रत्येक सर्ग का छन्द अलग हो जो अन्त में बदले । एक सर्ग में विविध छन्द भी हो सकते हैं। प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगे आने वाले सर्ग की कथा सूचना हो । शान्त, वीर, शृंगार में से किसी एक रस की प्रधानता हो । अन्य रस सहायक हों । कथावस्तु नाट्य सन्धियों-सी गठित हो । कथानक ऐतिहासिक अथवा किसी सज्जन से सम्बद्ध हो । चतुर्वर्ग यानी चारों पुरुषार्थअर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति महाकाव्य का उद्देश्य होना चाहिए । आरम्भ में मंगलाचरण, सज्जन प्रशंसा, खल वन्दना आदि आवश्यक रूप से होना चाहिए । उचित अवसरों पर निम्न वर्णनों का समावेश हो, जैसे-सूर्य, चन्द्र, सन्ध्या , रजनी, दिन, अन्धकार, प्रभात, मध्याह्न, मृगया, नदी, पर्वत, वन, सागर, ऋतु, संयोग, विप्रलम्भ, स्वर्ग, यज्ञ, नगर, युद्ध, विवाह, कुमार, जन्म आदि । महाकाव्य का नामकरण कवि, नायक, अन्य पात्रों या कथावस्तु के नाम पर होना चाहिए। सर्गों का नामकरण वर्ण्य विषय के आधार पर होना चाहिए। आचार्य विद्यासागर की 'मूकमाटी' को अगर इन परम्परागत लक्षणों के आधार पर परखा जाय तो महाकाव्य कहने में थोड़ा संकोच हो सकता है । वैसे इन परम्परागत मान्यताओं का अनेक पूर्ववर्ती महाकाव्यों में निर्वाह नहीं हो सका। 'मूकमाटी' की सर्ग संख्या आठ सर्गों से कम है। सभी सर्ग एक ही छन्द में वर्णित हैं और छन्द विधान नई कविता में है। कथानक की सूचना सर्गों के अन्त में प्रतिभासित नहीं होती है। नायक परम्परागत लक्षणों पर धीरोदात्त नहीं है । पुरुषार्थों में अर्थ और काम का यथोचित रूप मुखरित नहीं होता है । मंगलाचरण का अभाव है। 'मूकमाटी' का कथानक नितान्त ऐतिहासिक नहीं है। हिन्दी काव्य में महाकाव्य के इन परम्परागत लक्षणों के आधार पर अनेक काव्य इस परिधि के बाहर ठहर जाते हैं। किन्तु उपरोक्त परम्परागत लक्षणों पर भी परवर्ती आचार्यों में मतभेद हुआ और कुछ अनिवार्य लक्षण निर्धारित किए गए : १. नायक धीरोदात्त, २. कथानक ऐतिहासिक, ३. रसों की उपस्थिति और ४. पुरुषार्थ की प्राप्ति । निम्नलिखित लक्षणों पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका है। इन पर अभी भी विवाद है : १. सर्गबद्धता : कुछ आचार्य सर्ग संख्या अधिक और कुछ कम मानते हैं। सभी आचार्य सर्ग संख्या पर एक मत नहीं हैं। २. नामकरण : महाकाव्य के नामकरण पर भी मतभेद है। ३. आचार्य विश्वनाथ के अनुसार वर्ण्य विषय भी विवादग्रस्त है। कुछ आचार्यों ने महाकाव्य की प्रवृत्तियों पर जोर दिया और परिणामस्वरूप महाकाव्य की मुख्य प्रवृत्ति 'रस' मानी जाने लगी। कुछ विद्वानों ने आस्तिकता को महाकाव्य की प्रवृत्ति माना । तीसरी महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति महाकाव्य में
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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