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________________ 'मूकमाटी' : आध्यात्मिक चिन्तन का रस परिपाक डॉ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी जयशंकर प्रसाद की 'कामायनी' और रांगेय राघव का 'मेधावी' महाकाव्य पढ़ने के बाद आज उसी चिन्तन स्तर के महान् कर्तृत्व को 'मूकमाटी' के रूप में देख रहा हूँ। 'मूकमाटी' पर समीक्षा लिखने बैलूं तो पूरी किताब लिखी जा सकती है। रिसर्चस्कालर इस पर थीसिस कर सकते हैं, क्योंकि इसके प्रत्येक पृष्ठ पर मानव जीवन के रहस्य सूत्र सूक्ति के रूप में पिरोए हुए हैं। माटी बोलती है, लकड़ी बोलती है, कलश बोलता है, कुम्भकार बोलता है और बोलतेबोलते पाठक को वे भारत की उस चिरन्तन आध्यात्मिक परम्परा से जोड़ देते हैं, जो निरन्तर बदलती है और उत्कृष्ट से उत्कृष्टतर होती जाती है। यही परिवर्तन की निरन्तरता है और यही वह तत्त्व है जिसे 'मूकमाटी के महाकवि ने शाश्वत कहा है। सच बात तो यह है कि स्वयं मूकमाटी हजारों-हजारों वर्षों के भारत के आध्यात्मिक चिन्तन के महा बोधिवृक्ष का एक रस परिपाक (फल) है। योगशास्त्र, दर्शन शास्त्र, न्याय, व्याकरण, भाषाविज्ञान और सौन्दर्यशास्त्र का जो गहरा ज्ञान कवि को है, वह क़दम-कदम पर पाठक से परिचय पूछता है और अपना भी परिचय बतलाता है। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य का जीवन मूल प्रवृत्तियों (Stincts) से परिचालित होता है। वे मूल प्रवृत्तियों तक पहुँच सके हैं परन्तु 'मूकमाटी' उस चिन्तन परम्परा को आगे बढ़ाने वाला काव्य है, जो मानती है कि आत्मा शुभ और निर्दोष है, निर्लिप्त है तथा दोषों का कारण वे कषाय हैं। 'मूकमाटी' का चिन्तन मन का स्वामी बनने, इन्द्रियों पर प्रभुता स्थापित करने, वीर, महावीर तथा जिन बनने का मार्ग प्रदर्शित करता है ताकि यह धरती युद्धों से शून्य हो सके, इसके दु:खों का निवारण हो सके और सुख का साम्राज्य प्रतिष्ठित हो सके । इस काव्य को किसी की सम्मति या समीक्षा की क्या आवश्यकता ? यह तो खरा सोना है, स्वयं ही अपने खरेपन का प्रमाण है। यह तो सन्तों की वाणी है, इसमें से जितना हम ले सकें, ग्रहण करें परन्तु कागज पर लिखने के लिए नहीं, आचरण की लिपि से जीवन पट पर उतारने के लिए है। चिन्तन का प्रवाह ही इस का छन्द है, चिन्तन प्रवाह में आने वाले जीवन के सत्य ही इसके अलंकार हैं और जीवन का सनातनत्व ही इसका रस है । इस काव्य को काव्यशास्त्र के प्रचलित मापदण्डों के आधार पर देखना चाहें तो देखें भले ही, परन्तु यह काव्य लीक से हटकर लिखा गया है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से, परिवेश शास्त्रीय दृष्टि से, काव्यशास्त्रीय दृष्टि से तथा जैन दर्शन की दृष्टि से इस पर समीक्षाएँ की जा सकती हैं और जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जायगा इस काव्य पर आगे चलकर ऐसी समीक्षाएँ लिखी भी जाएंगी परन्तु फिलहाल तो मैं यही चाहता हूँ कि कोई शोधक विद्वान् अपनी शोध परियोजना के लिए 'मूकमाटी' को चुन ले तथा विभिन्न शास्त्रों के आधार पर इस के समीक्षात्मक अध्ययन को प्रस्तुत करे, सम्भव हो तो कवि के समग्र कर्तृत्व को भी लिया जा सकता या पर विजय प्राप्त करना सबकेशकीबात नहीं. और वह भी स्त्री-पर्याय में 'अनहोनी-सी घटना
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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